नई दिल्ली:- कबूतरों को दाना डालना उसे खिलाना हम अच्छा कार्य समझते हैं. हालांकि, शहरी इलाकों में कई मामलों में ये पक्षी परेशानी का सबब भी बनते जा रहे हैं. कबूतर के बीट अपने साथ सांस संबंधी कई खतरनाक बीमारियां साथ लाते हैं. रिपोर्ट की माने तो खासकर शहरी इलाकों में कबूतरों की बीट का पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
कबूतरों के भोजन और प्रजनन के कारण उनकी बीट फुटपाथ पर जमा हो जाते हैं. सूखे बीट के जहरीले घटक धूल के साथ मिल जाते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषण होता है. कबूतरों के भोजन स्थलों को जब साफ किया जाता है तो इंसान के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं आस पास के इमारतों को भी इससे नुकसान पहुंचता है.
ऐसे में कबूतरों की बीट से होने वाले नुकसान के बारे में लोगों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है. उन्हें कबूतरों की बीट से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए.
हालांकि, कबूतरों की भलाई भी सुनिश्चित की जानी चाहिए. कबूतरों को खिलाने के लिए एक निश्चित इलाका होना चाहिए. प्रशासन को यह सख्ती से सुनिश्चित करना चाहिए कि तय क्षेत्रों में उन्हें खाना खिलाया जाए.
कबूतरों की बीट के मुद्दे पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
कबूतरों को लेकर एनजीटी की प्रिंसिपल बेंच ने पिछले महीने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और अन्य संबंधित एजेंसियों को नोटिस जारी किया था.एनजीटी अध्यक्ष प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली बेंच ने 29 मई को एक आवेदक की याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी किया. आवेदक, एक स्कूली छात्र ने कहा था कि कबूतरों को खिलाने और उनकी संख्या बढ़ाने से दिल्ली एनसीआर में फुटपाथ और यातायात स्थानों पर कबूतरों की बीट बढ़ जाती है.
छात्र ने अपनी याचिका में कहा कि, जब इन खिलाने वाले क्षेत्रों को झाड़ू लगाया जाता है तो सूखे बीट के विषाक्त तत्व धूल के साथ मिल जाते हैं, पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं.
आवेदक ने आरोप लगाया था कि, इस तरह की बीट से फेफड़ों की गंभीर बीमारियां होती हैं, जैसे हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस, जिससे फेफड़ों में जख्म हो जाता है और सांस लेने में दिक्कत होती है. बेंच ने कहा कि इससे पर्यावरण मानदंडों के अनुपालन से संबंधित गंभीर मुद्दा उठता है. मामले पर अगली सुनवाई 8 अक्टूबर को होगी.
कबूतरों की बीट पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ की राय
नई दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (एलएचएमसी) के पूर्व निदेशक डॉ. सुभाष गिरी ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि, कबूतरों की बीट के संपर्क में आने से इंसानों को होने वाले आम स्वास्थ्य जोखिम तब होते हैं, जब उनकी बीट सूख जाती है और हवा में फैल जाती है, जिससे पर्यावरण दूषित हो जाता है. इनके सांस के जरिए अंदर जाने से फेफड़ों से जुड़ी कुछ बीमारियां हो सकती हैं.