हर साल नवरात्रि का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह भारतीय हिंदू परंपरा का एक प्रमुख त्यौहार है. इस साल भी लोग नवरात्रि को बड़े ही उत्साह के साथ मना रहे हैं. लोग तरह-तरह से देवी भगवती को प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं. नवरात्रि के नौ दिनों में भक्त बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ उनकी पूजा-अर्चना करते हैं.
नवरात्रि के नौ दिनों में ज्यादातर हिंदू घरों में प्याज, लहसुन और मांसाहारी भोजन जैसे मांस-मछली वर्जित होते हैं. लेकिन, देश में कुछ जगहें ऐसी भी हैं जहां हिंदू नवरात्रि के दौरान मछली और मटन पकाकर देवी को भोग लगाते हैं. जी हाँ! आपने सही सुना! बंगाली संस्कृति में भी नवरात्रि के दौरान मछली और मटन का भोग लगाया जाता है.
इस जगह पर मछली और मटन क्यों परोसा जाता है
दरअसल, बंगाली संस्कृति में मछली और मटन का एक विशेष स्थान है. जब भी कोई बंगाली परिवार कोई शुभ अवसर मनाता है, तो मछली और मटन के व्यंजन जरूर बनते हैं. इन्हें शादियों और अन्य त्योहारों के लिए शुभ माना जाता है. पुजारी शुभ बंद्योपाध्याय के अनुसार, बंगाली संस्कृति में देवी दुर्गा को पुत्री माना जाता है, और यह परंपरा है कि जब भी कोई बेटी अपने पिता के घर आती है, तो उसे स्वादिष्ट मछली और मटन के व्यंजन खिलाए जाते हैं. इसके साथ ही पुजारी शुभ बंद्योपाध्याय का कहना है कि मां दुर्गा के साथ-साथ अन्य योगिनियों की भी पूजा की जाती है. इसीलिए भी यह भोग लगाया जाता है.
पुजारी शुभ बंद्योपाध्याय कहते हैं कि नवरात्रि के दौरान आमतौर पर सात्विक भोजन (बिना प्याज और लहसुन वाला भोजन) खाया जाता है और प्रसाद के लिए तैयार किया जाने वाला मटन और मछली भी बिना प्याज और लहसुन के बनाया जाता है. बंगाल के कुछ शक्ति मंदिरों में, खासकर काली पूजा के दौरान, मांस और मछली का भोग लगाने की विशेष परंपरा है. ये व्यंजन विशेष रूप से बिना प्याज और लहसुन के तैयार किए जाते हैं. इसे ‘निरामिश मंगशो’ (निरामिश मटन) कहा जाता है. इस प्रकार, दुर्गा पूजा के दौरान मछली और मटन पकाना केवल स्वाद के लिए नहीं, बल्कि एक गहरी परंपरा है जो बंगाली संस्कृति का हिस्सा बन गई है.