रायपुर: आज दोपहर लगभग 1:00 बजे छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग के कार्यालय में अविश्वसनीय हंगामा देखने को मिला। बुलंद छत्तीसगढ़ न्यूज़ के प्रतिनिधि अभय शाह और न्यूज़ 21 के दुलारे अंसारी जब अपर संचालक संजीव तिवारी से जब कल के विवाद के संबंध में बातचीत करने गए, तो विभागीय अधिकारी आग बबूला हो गए।
जनसम्पर्क विभाग के अपर संचालक संजीव तिवारी ने दुलारे अंसारी को धक्का देते हुए कार्यालय से बाहर भगाया, और अभय शाह के गले को पकड़कर मारपीट की। आकस्मिक हुई इस घटना से कार्यालय में हड़कंप मच गया।
विवाद उस समय शुरू हुआ जब पत्रकारों ने यह सवाल किया कि कल क्यों किसी प्रतिनिधि को डांटकर भगा दिया गया और पेपर नहीं देने को कहा गया। अपर संचालक संजीव तिवारी की प्रतिक्रिया इतनी उग्र थी कि कार्यालय में मौजूद कर्मचारी भी सन्न रह गए। घटना के बाद विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।
जनसंपर्क विभाग का ‘अमर सपूत’ संजीव तिवारी
राज्य बनने से अब तक संजीव तिवारी छत्तीसगढ़ के जनसंपर्क विभाग में स्थायी बने हुए हैं। कांग्रेस या भाजपा, किसी भी सरकार में उनका पद और प्रभुत्व जस का तस रहा। सूत्र बताते हैं कि तिवारी ने विभाग में ऐसा मजबूत प्रशासनिक और मीडिया नेटवर्क खड़ा कर रखा है, जो उन्हें हर राजनीतिक माहौल में सुरक्षित रखता है।
उनकी खासियत यह है कि वे हर सत्ताधारी दल के विश्वास को बनाए रखते हैं और किसी ‘क्लीन-अप ड्राइव’ की चपेट में नहीं आते। उनके अधीनस्थ और ठेकेदार भी उनके सिस्टम के तहत काम करते हैं, जिससे उनकी पकड़ मजबूत बनी रहती है। अब नई सरकार और प्रशासन की निगाहें इस बात पर हैं कि क्या यह ‘स्थायी व्यवस्था’ हिलेगी या जनसंपर्क विभाग का ‘अमर सपूत’ संजीव तिवारी की कुर्सी ज्यों की त्यों बनी रहेगी।
प्रेस पर हमला लोकतंत्र पर हमला है!
मनोज पांडेय
जनसंपर्क विभाग जैसी संवेदनशील और लोकतांत्रिक संस्थाओं में पत्रकारों के साथ इस तरह का आक्रामक व्यवहार पूरी तरह अस्वीकार्य है। मीडिया की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आधारशिला है और पत्रकारों को सवाल पूछने का अधिकार सुरक्षित रखना हर प्रशासनिक अधिकारी का कर्तव्य है। जब किसी अधिकारी का रवैया इतनी तीव्रता से पत्रकारों पर हमला करने तक पहुँचता है, तो यह न केवल व्यक्तिगत स्तर पर हिंसा है बल्कि पूरी संस्था की विश्वसनीयता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
इस घटना से स्पष्ट है कि विभाग के भीतर अधिकारी और उनके अधीनस्थ अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। दफ्तर में मौजूद अन्य कर्मचारियों और प्रतिनिधियों पर इसका असर भी नकारात्मक रहा और यह दिखाता है कि विभाग में भय का वातावरण कायम हो गया है। ऐसे मामलों में सख्त जांच और जवाबदेही आवश्यक है, ताकि भविष्य में कोई पत्रकार या प्रतिनिधि डर के साये में काम न करे।
जनसंपर्क विभाग को चाहिए कि वह अपनी कार्यप्रणाली में पूरी पारदर्शिता लाए, और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करे कि वे सभी परिस्थितियों में संयम बनाए रखें। अधिकारी केवल पद और सत्ता का लाभ लेने के बजाय, लोकतांत्रिक मूल्य और प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करें।
इसके साथ ही यह घटना प्रशासनिक संस्कृति की कमजोरी को भी उजागर करती है। एक अधिकारी का ऐसा आक्रामक रवैया विभागीय तंत्र की विश्वसनीयता और प्रशासनिक नैतिकता पर भी सवाल खड़ा करता है। लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता के बिना प्रशासन की जवाबदेही अधूरी है। इस संदर्भ में यह घटना केवल एक व्यक्तिगत विवाद नहीं है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र की परीक्षा है।
इसलिए आवश्यक है कि विभाग और सरकार दोनों इस मामले को गंभीरता से लें, दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें और सुनिश्चित करें कि भविष्य में पत्रकारों और मीडिया प्रतिनिधियों के साथ किसी प्रकार का आक्रामक व्यवहार दोबारा न हो। लोकतंत्र की रक्षा और मीडिया की स्वतंत्रता के लिए यह कदम अनिवार्य है।