बिलासपुर : हाईकोर्ट ने पिता की मौत के बाद एसईसीएल में अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले पुत्र द्वारा अपने नैतिक व कानूनी दायित्व का उल्लंघन करने पर जमकर फटकार लगाई है। मृतक पिता के आश्रितों का देखभाल बंद करने वाले पुत्र की अपील खारिज कर दस हजार रुपए प्रति माह देने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने भुगतान करने में चूक करने पर एसईसीएल प्रबंधन को पुत्र के वेतन से कटौती कर सीधे मृतक की आश्रित मां के खाते में जमा कराने का निर्देश भी दिया है।
कोरबा क्षेत्र में रहने वाली महिला का पति एसईसीएल दीपका में कर्मचारी था। सेवाकाल के दौरान पति की मौत होने पर उसने अपने बड़े पुत्र को अनुकंपा नियुक्ति देने सहमति दी। एसईसीएल की नीति के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति पाने वाला मृतक के आश्रितों का देखभाल करेगा, यदि वह अपने नैतिक व कानूनी दायित्व का उल्लंघन करता है, तो उसके वेतन से 50 प्रतिशत राशि काट कर आश्रितों के खाते में राशि जमा किया जाएगा। इस मामले में अनुकंपा नियुक्ति पाने के बाद कुछ दिनों तक बड़ा बेटा अपनी मां व भाई का देखभाल करता रहा। 2022 से उसने मां व छोटे भाई को छोड़ दिया।
एसईसीएल को भी बनाया गया था पक्षकार
मां ने एसईसीएल की नीति के अनुसार, उसके वेतन से कटौती कर 20 हजार रुपए प्रति माह दिलाए जाने याचिका पेश की। मामले में एसईसीएल को भी पक्षकार बनाया गया। एसईसीएल ने जवाब में कहा कि नीति के अनुसार सहमति का उल्लंघन करने पर 50 प्रतिशत राशि काट कर मृतक के आश्रितों के खाता में जमा किया जाना है। एसईसीएल के जवाब पर उत्तरवादी पुत्र ने कहा कि याचिकाकर्ता मां को 5500 रुपए पेंशन मिल रहा है, इसके अलावा मृतक की सेवानिवृत्त देयक राशि है, इससे वह अपना देखभाल कर सकती है। इसके साथ उत्तरवादी पुत्र ने 10 हजार रुपए प्रतिमाह देने कोर्ट में सहमति दी। सहमति देने पर एकल पीठ ने 10 हजार रुपए हर माह देने था भुगतान में चूक करने पर एसईसीएल को उसके वेतन से काट कर मां के खाता में जमा कराने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा- मां की देखभाल करनी होगी
हाईकोर्ट की एकल पीठ के निर्णय के खिलाफ बड़े बेटे ने डीबी में अपील पेश की। अपील में उसने कहा कि उसका कुल वेतन 79 हजार नहीं बल्कि 47 हजार रुपए हैं, इसमें भी ईएमआई कट रहा है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डीबी ने कहा कि मां की सहमति से बड़े बेटे को नियुक्ति मिली है और पूर्व में 10 हजार रुपए देने की कोर्ट में भी पुत्र ने सहमति दी थी। इसलिए तय की हुई राशि हर महीने मां के खाते में भुगतान करनी ही होगी। इस आदेश के साथ कोर्ट ने पुत्र की अपील को खारिज कर दिया है।