रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में मंगलवार को पीएचई विभाग में सिविल इंजीनियरों की भर्ती का मुद्दा जोर-शोर से उठा। इस भर्ती में बीई और बीटेक डिग्रीधारकों को अपात्र करार दिए जाने को लेकर विपक्षी भाजपा और सत्ता पक्ष के विधायकों ने सरकार को घेरा। विधायकों ने भर्ती नियमों में संशोधन की मांग की, लेकिन विभागीय मंत्री अरुण साव इसके लिए तैयार नहीं हुए। इससे नाराज कांग्रेस विधायकों ने सदन से वॉकआउट कर दिया।
भाजपा विधायक राजेश मूणत ने ध्यानाकर्षण सूचना के तहत यह मुद्दा उठाया और सरकार से सवाल किया कि जब 2017 में इसी विभाग में उप अभियंता की भर्ती में डिग्रीधारकों को पात्र मानते हुए नियुक्तियां दी गई थीं, तो इस बार उन्हें क्यों बाहर कर दिया गया? इसके जवाब में विभागीय मंत्री अरुण साव ने कहा कि यह भर्ती पूरी तरह से नियमों के अनुरूप हो रही है और इस पद के लिए केवल तीन वर्षीय डिप्लोमा धारकों को पात्र माना गया है। उन्होंने यह भी कहा कि हर विभाग अपनी आवश्यकता के अनुसार भर्ती प्रक्रिया तय करता है।
इस चर्चा में भाग लेते हुए नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने ऐसे ही एक अन्य मामले में डिग्रीधारकों के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए मंत्री से सवाल किया कि क्या सरकार शीर्ष अदालत के आदेश का पालन करेगी? इस पर मंत्री का जवाब स्पष्ट नहीं रहा। कांग्रेस विधायक उमेश पटेल ने भी इस भर्ती प्रक्रिया में खामियां गिनाते हुए सरकार से इसमें सुधार कर डिग्रीधारकों को भी पात्रता सूची में शामिल करने की मांग की, लेकिन मंत्री के अड़ियल रुख के कारण यह मांग स्वीकार नहीं की गई।
सरकार के रुख से नाराज कांग्रेस विधायकों ने सदन की कार्यवाही का बहिष्कार कर वॉकआउट कर दिया। इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष के कुछ विधायक भी सरकार से सवाल पूछते नजर आए, जिससे विभागीय मंत्री अरुण साव असहज दिखे। विपक्ष ने सरकार पर बेरोजगार इंजीनियरों के साथ अन्याय करने का आरोप लगाते हुए भर्ती नियमों में तत्काल संशोधन की मांग की।