गयाजी: विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले में पितरों के मोक्ष की कामना को लेकर बिहार के गयाजी में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ रहा है. मोक्ष भूमि के नाम से विख्यात गयाधाम में एक विशेष पिंडवेदी है, जिसे अकाल मृत्यु वालों को मोक्ष दिलाने वाली प्रेतशिला कहा जाता है. पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन त्रैपाक्षिक श्राद्ध करने वाले पिंडदानी विशेष रूप से प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करते हैं. ऐसा मानना है कि यहां पिंडदान किए बिना मोक्ष नहीं मिलता.
अकाल मृत्यु और प्रेतशिला पर पिंडदान:भूतों के पहाड़ (प्रेतशिला) पर पिंडदान से अकाल मृत्यु से मरे, प्रेत योनि में गए, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. यही वजह है कि पितृपक्ष मेले में इस पिंडवेदी पर तीर्थ यात्रियों की भारी भीड़ उमड़ती है. सालों भर यहां अकाल मृत्यु से प्रेत योनी में गए पितरों के निमित्त पिंडदान का सिलसिला चलता है.
चट्टानों के छिद्रों में बसेरा करते हैं भूत: मान्यता है कि जिनकी अकाल मृत्यु होती है, उनका वास प्रेत के रूप में इस पर्वत पर होता है. इसीलिए इस भूतों का पहाड़ कहा जाता है. पहाड़ के शिखर पर रहे धर्मशिला के समीप पिंडदान के बाद प्रेत वेदी के विशाल शिला पर सत्तू उड़ाया जाता है और परिक्रमा की जाती है. सत्तू उड़ाने से प्रेत योनी में रहे पितर प्रेत वेदी की छिद्रों के सहारे स्वर्ग तक पहुंच जाते हैं. ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है.
प्रेतशिला पर उड़ाते हैं सत्तू: बता दें कि प्रेतशिला के शिखर तक पहुंचने के लिए 676 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. ऊपर धर्मशिला स्थित है. जहां ब्रह्मा जी ने अपने पदचिह्न छोड़े थे. यहीं पिंडदान का मुख्य कर्मकांड पूरा होता है.
त्रैपाक्षिक श्राद्ध का महत्व: प्रेतशिला के अलावे राम कुंड, रामशिला और कागबली पर श्राद्ध करना चाहिए. प्रेतशिला पहाड़ी के नीचे तीन कुंड है, जिसे निगरा कुंड, सुख कुंड और सीता कुंड कहा जाता है. इसके अलावा यहां ब्रह्म कुंड है. प्रेतशिला स्थित ब्रह्मकुंड में स्नान करने के उपरांत ही प्रेतशिला पिंडवेदी पर पिंडदान श्राद्ध का कर्मकांड करना चाहिए.
शाम ढलते ही छा जाता है सन्नाटा: प्रेतशिला पर शाम ढलने के बाद कोई नहीं मिलता. इक्के-दुक्के जो लोग अपवाद स्वरूप रहते हैं. पुजारी संतोष गिरी का कहना है कि प्रेतशिला में पिंडदान से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. संध्या ढलते ही यहां रहना वर्जित है क्योंकि पहाड़ के छिद्रों से प्रेतों की आवाज आती है. यही कारण है कि इसे प्रेतों का पर्वत कहा जाता है.
डोली से भी पहुंचते हैं श्रद्धालु : जो 676 सीढ़ियां चढ़ने में असमर्थ होते हैं, वे डोली के सहारे शिखर तक पहुंचते हैं. डोली के सहारे यहां के स्थानीय मजदूर उन्हें पहाड़ की शिखर तक ले जाने और लाने का काम करते हैं.
श्रद्धालुओं की आस्था और अनुभव : इलाहाबाद से आए सुरेश गर्ग ने बताया कि उनके छोटे भाई की अकाल मृत्यु हुई थी. वे मोक्ष दिलाने के लिए यहां पिंडदान कर रहे हैं. वहीं कोलकाता के धीरज जाना ने कहा कि उनके भाई बहन की अकाल मृत्यु हो गई थी, इसलिए यहां पिंडदान करना जरूरी समझा.
