नई दिल्ली : दुनिया में बीयर के शौकीनों की कोई कमी नहीं है. गर्मी के मौसम में अक्सर वीकेंड पर आपको लोग बीयर पार्टी करते मिल जाएंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी बीयर में एक ऐसा तत्व पाया जाता है, जिससे अब पूरी दुनिया डरी हुई है. चलिए जानते हैं कि आखिर इस नाइट्रोसेमाइन का असर हमारे शरीर पर कितना ज्यादा पड़ता है. इसके साथ ही ये भी जानते हैं कि आखिर ये बीयर में आता कहां से है.
नाइट्रोसेमाइन कितना खतरनाक
यूरोपियन हेल्थ एक्सपर्ट ने कुछ समय पहले एक रिसर्च किया और पाया कि बीयर और प्रोसेस्ड मीट में मिलने वाला तत्व नाइट्रोसेमाइन कई तरह के कैंसर का कारक है. खासतौर से लंग्स, ब्रेन, लिवर, किडनी, गला और पेट के कैंसर में नाइट्रोसेमाइन का बड़ा रोल है. यूरोपिय यूनियन के हेल्थ एक्सपर्ट ने कहा है कि अगर नाइट्रोसेमाइन आपके शरीर में लगातार जाता रहा तो आपको कैंसर होने की संभावना किसी सामान्य इंसान के मुकाबले ज्यादा हो सकती है. चलिए अब जानते हैं कि आखिर बीयर में नाइट्रोसेमाइन आता कहां से है.
बीयर में कहां से आता है नाइट्रोसेमाइन
अगर आपको लगता है कि नाइट्रोसेमाइन कोई केमिकल है, जिसे बीयर बनाने वाली कंपनियां अलग से बीयर में मिलाती हैं तो आप गलत हैं. दरअसल, बीयर में नाइट्रोसेमाइन अपने आप उसके निर्माण के समय में बनता है. इसके बनने की प्रक्रिया को समझें तो ये तब शुरू होती है, जब नाइट्रेट या नाइट्राइट यौगिक अमाइन नामक यौगिकों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं. आपको बता दें, अमाइन बीयर में मौजूद हॉप्स और अन्य अवयवों से प्राप्त होते हैं. जबकि, नाइट्रेट या नाइट्राइट का स्रोत आमतौर पर पानी होता है, जिसे बीयर बनाते समय उपयोग किया जाता है.
आसान भाषा में समझाएं तो बीयर के निर्माण के समय रासायनिक प्रक्रियाओं के दौरान यौगिकों की प्रतिक्रिया की वजह से नाइट्रोसेमाइन का निर्माण होता है. और आसान भाषा में समझिएदरअसल, बीयर में नाइट्रोसेमाइन का मुख्य स्रोत माल्टिंग प्रक्रिया है. यानी जब अनाज को बीयर बनाने के लिए माल्ट किया जाता है, तो हाई टेंपरेचर पर यह प्रक्रिया नाइट्रोजन युक्त यौगिकों को अमाइन में बदल देती है. इसके अलावा, जब बीयर को पकाया जाता है यानी गरम किया जाता है, तब नाइट्रोजन युक्त यौगिक नाइट्रोसेमाइन में बदल जाते हैं.
हालांकि, बीयर बनाने वाली कंपनियां इसके नियंत्रण के लिए कई तरह के तकनीकों का इस्तेमाल करती हैं. महंगी बीयर में नाइट्रोसेमाइन की मात्रा बेहद कम होती है, जबकि सस्ती कीमत वाली बीयरों में नाइट्रोसेमाइन की मात्रा अधिक होती है. ऐसा इसलिए क्योंकि, सस्ती बीयरों को बनाने की प्रक्रिया में इतनी सावधानी नहीं बरती जाती