नई दिल्ली:- विज्ञान ने इस बार प्रकृति की सीमाओं को सीधी चुनौती दी है. चीन के जियाओतोंग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा चूहा तैयार किया है, जो केवल दो नर चूहों के डीएनए से जन्मा है. यानी न कोई मां, न अंडाणु… सिर्फ दो शुक्राणुओं की मदद से यह जन्म संभव हुआ है. यह प्रयोग न सिर्फ सफल रहा, बल्कि चौंकाने वाली बात यह रही कि इससे जन्मा चूहा स्वस्थ और प्रजनन में भी सक्षम है. यानी वह आगे संतान भी पैदा कर सकता है. यह स्टडी 23 जून 2025 को नामी साइंटिफिक जर्नल Proceedings of the National Academy of Sciences में छपी है. इस सफलता ने जेनेटिक्स और रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी के क्षेत्र में एक नई क्रांति की शुरुआत कर दी है.
कैसे हुआ यह चमत्कार
इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने एपिजेनेटिक प्रोग्रामिंग यानी मिथाइलेशन पैटर्न को एडिट कर के एक नया तरीका अपनाया. मिथाइलेशन वह प्रक्रिया है जिससे डीएनए की एक्टिविटी को नियंत्रित किया जाता है, लेकिन इसका खुद डीएनए सीक्वेंस पर कोई असर नहीं होता.
दो अलग-अलग नर चूहों के शुक्राणुओं का उपयोग किया गया – एक लैब-ब्रेड माउस और दूसरा थाईलैंड के वाइल्ड माउस की नस्ल से. सबसे पहले एक अंडाणु से उसका जीनोम हटाया गया. फिर उसमें दो नर शुक्राणुओं के हेड्स इंजेक्ट किए गए. इनमें से एक के मिथाइलेशन पैटर्न को महिला डीएनए जैसा बनाया गया.
इस तरह एक ऐसा भ्रूण तैयार हुआ जिसमें दोनों डीएनए स्त्रोत पुरुष थे. उसे महिला चूहिया में प्रत्यारोपित किया गया, और उससे तीन जीवित बच्चे जन्मे. इनमें से एक, आकार में असामान्य रूप से बड़ा होने के कारण, जन्म के अगले दिन मर गया, लेकिन दो चूहे स्वस्थ थे और उनमें से एक प्रजनन में भी सक्षम निकला.
20 साल की रिसर्च और अब जाकर सफलता
यह पहली बार नहीं है जब वैज्ञानिकों ने एकल लिंग से संतान पैदा करने का प्रयास किया है. 2004 में जापान में दो मादा चूहियों से संतति का जन्म हुआ था, जिसे कगुया नाम दिया गया था. लेकिन दो नर से संतान पैदा करने के प्रयास पहले विफल रहे. 2018 में एक प्रयोग में दो नर चूहों के जीन को मिलाकर एक भ्रूण तैयार किया गया, लेकिन जन्म के एक दिन बाद ही वह चूहा मर गया.
इस बार चीनी वैज्ञानिकों ने जीन डिलीशन की बजाय मिथाइलेशन के जरिए एपिजेनेटिक रीप्रोग्रामिंग की. इससे भ्रूण ज्यादा स्वस्थ रहा और उसकी जीवन क्षमता भी बेहतर रही.
विज्ञान के लिए क्या मायने हैं इस खोज के
University College London की असोसिएट प्रोफेसर हेलेन ओ’नील कहती हैं, ‘यह साबित करता है कि स्तनधारियों में एक ही लिंग से संतान पैदा करने में मुख्य बाधा जीनोमिक इम्प्रिंटिंग है. और अब शायद इसे पार किया जा सकता है.
यह प्रयोग दिखाता है कि प्राकृतिक रूप से आवश्यक माने जाने वाले जीन इम्प्रिंटिंग पैटर्न को विज्ञान बदल सकता है. जीनोमिक इम्प्रिंटिंग में पुरुष और महिला दोनों अपने डीएनए पर विशिष्ट रासायनिक बदलाव करते हैं, जो भ्रूण के विकास में जरूरी होते हैं. अब वैज्ञानिकों ने इन बदलावों को लैब में सफलतापूर्वक रीप्रोग्राम कर लिया है.
क्या इंसानों में होगा ऐसा संभव
शायद नहीं. वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि यह तकनीक इंसानों पर लागू नहीं की जा सकती. इसकी वजहें हैं – अत्यधिक कम सफलता दर, हजारों अंडों की जरूरत, और बड़ी संख्या में सरोगेट महिलाओं की जरूरत. Sainsbury Wellcome Centre के क्रिस्टोफ गालिचे के अनुसार, ‘इंसानों में इस तकनीक को लागू करना न सिर्फ अव्यवहारिक है, बल्कि नैतिक रूप से भी बेहद संवेदनशील मामला होगा.’
भले ही यह सफलता इंसानों के लिए सीधे उपयोगी नहीं है, लेकिन इससे रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी, जेनेटिक इंफर्टिलिटी और क्लोनिंग जैसे क्षेत्रों में नई राहें खुलेंगी. साथ ही यह प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा, पशुपालन और विलुप्त प्रजातियों को दोबारा जीवित करने जैसे क्षेत्रों में भी नई दिशा दे सकता है.

