नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाई कोर्ट्स में लंबित समलैंगिक विवाह से संबंधित सभी याचिकाओं को अपने पास ट्रांसफर कर लिया है और केंद्र सरकार से मामले पर 15 फरवरी तक जवाब दाखिल करने को कहा है। उसने सरकार और याचिकाकर्ताओं से मुद्दे से संबंधित कानूनों और मिसालों का लिखित नोट आपस में और कोर्ट के साथ साझा करने को भी कहा है। वही मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि याचिकाओं पर 13 मार्च में सुनवाई होगी। इस दौरान एनके कौल ने कहा कि सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में सुने जाएं। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के पास स्वत: संज्ञान शक्ति है।
वहीं सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए रेडी था। वहीं, एडवोकेट मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि याचिकाकर्ता भी हम सभी की तरह हैं। चीफ जस्टिस ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि इस दौरान इस मामले से जुड़े सभी पक्षकारों के वकीलों के साथ एक मीटिंग करें और सभी मुद्दों पर विचार करें। उससे सुनवाई में आसानी होगी। चुनौती हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक दी जाएगी या विशेष विवाह अधिनियम के आधार पर।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आदेश दिया कि कई हाईकोर्ट में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर अर्जियां लंबित हैं, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि सभी हमारे पास आ जाएं, ताकि उनका एक साथ निपटारा हो सके। पक्षकारों ने कहा कि केरल, गुजरात, दिल्ली और केरल हाईकोर्ट में भी याचिकाएं लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम याचिकाकर्ताओं को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए अपना पक्ष रखने की आजादी देते हैं।
समलैंगिक जोड़ों की क्या मांगें हैं?
धारा 377 रद्द होने के बाद से ही समलैंगिक जोड़े मांग कर रहे हैं कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में संशोधन करके समलैंगिक विवाह को इसमें शामिल किया जाना चाहिए, ताकि वो अपनी शादी का इसके तहत कानूनी रजिस्ट्रेशन करा सकें। समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के लिए उन्होंने इस अधिनियम और विवाह से संबंधित अन्य कानूनों को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की है, ताकि वो भी सामान्य जोड़ों को मिलने वाले अधिकारों का लाभ उठा सकें।