दुर्गा पूजा का नाम सुनते ही सबसे पहले मन में भव्य पंडाल, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि और भक्तों की भीड़ उमड़ती है. पश्चिम बंगाल में यह त्यौहार न केवल एक पूजा के रूप में, बल्कि एक प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा कई पारंपरिक प्रदर्शनों के साथ मनाई जाती है, जिनमें से सबसे अनोखा और सुंदर है धुनुची नृत्य. कई लोगों का मानना है कि धुनुची नृत्य के बिना दुर्गा पूजा अधूरी है. यह धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण बंगाली शक्ति नृत्य है, जो देवी दुर्गा के सामने किया जाता है. धुनुची नृत्य बंगाल और आसपास के कई राज्यों में दुर्गा पूजा के दौरान किया जाता है और भक्त इसमें उत्साह से भाग लेते हैं. आइए जानें कि इस नृत्य को इतना खास क्या बनाता है…
धुनुची नृत्य का क्या अर्थ है
धुनुची नृत्य की शुरुआत सबसे पहले दुर्गा पूजा के दौरान जमींदारों के घरों में हुई थी. बाद में, यह परंपरा कोलकाता और बंगाल के विभिन्न हिस्सों में बारवारी पूजा के दौरान लोकप्रिय हो गई. आज, यह न केवल दुर्गा पूजा का एक अनिवार्य हिस्सा है, बल्कि एक प्रतियोगिता का रूप भी ले चुका है.
पुराणों के अनुसार, महिषासुर का वध करने से पहले, देवी दुर्गा ने शक्ति संचय हेतु धुनुची नृत्य किया था. तब से, यह माना जाता है कि इस नृत्य के माध्यम से व्यक्ति स्वयं को पूर्णतः देवी दुर्गा के प्रति समर्पित कर सकता है और इससे सभी बुरी शक्तियां दूर हो जाती हैं. हाथों में जलती हुई धुनुची लेकर नृत्य करने की यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
धुनुची नृत्य क्यों और कैसे करते हैं
धुनुची मूलतः एक मिट्टी का बर्तन होता है जिसमें जलते हुए नारियल के खोल या कोयले पर धूप जलाई जाती है. प्राचीन काल से ही इसका उपयोग वातावरण को शुद्ध करने और पूजा के दौरान देवताओं की पूजा के लिए किया जाता रहा है. धुनुची नृत्य पश्चिम बंगाल का एक पारंपरिक नृत्य है. माता की आरती के दौरान हाथ में धूपबत्ती जलती हुई मिट्टी का बर्तन लिया जाता है. यह नृत्य देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. नृत्य के दौरान जलती हुई धूपबत्ती से निकलने वाला धुआं वातावरण को भक्ति और ऊर्जा से भर देता है.
धुनुची नृत्य दुर्गा पूजा के आनंद को कई गुना बढ़ा देता है. ढोल, बांसुरी, शंख और धुनुची के धुएं का मेल एक मनोरम वातावरण का निर्माण करता है. लिंग भेद के बिना हर कोई इस नृत्य में भाग लेता है और एक सामाजिक समागम का निर्माण करता है. धुनुची नृत्य बंगाली लोक संस्कृति का एक विशिष्ट प्रतीक है. यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है. चाहे अष्टमी की सुबह हो या नवमी की रात, सप्तमी की शाम हो या दशमी की भोर, बंगाली दुर्गा पूजा धुनुची नृत्य के बिना अधूरी है. धुनुची को धूप और अगरबत्ती से जलाया जाता है, और जलती हुई धुनुची को कभी हाथ में, कभी मुंह में, कभी कमर पर रखकर ताल पर नृत्य किया जाता है. ढाक की थाप के साथ तालमेल बिठाने वाला यह नृत्य बंगालियों के लिए एक अनूठा आयाम रखता है.
धुनुची नृत्य कब किया जाता है
दुर्गा पूजा के दौरान संध्या आरती के समय धुनुची नृत्य किया जाता है. यह नृत्य बंगाल की समृद्ध परंपराओं और संस्कृति की झलक भी प्रस्तुत करता है. यह नृत्य केवल बंगाल तक ही सीमित नहीं है, अब यह देश भर के कई राज्यों में किया जाता है. कई महिलाएं पारंपरिक लाल और सफेद साड़ियां पहनकर यह नृत्य करती हैं. धुनुची नृत्य केवल एक पारंपरिक नृत्य ही नहीं है, यह बंगाल की सांस्कृतिक विरासत, मान्यताओं और त्योहारों का एक जीवंत प्रतीक है. दुर्गा पूजा जैसे प्रमुख त्योहार के दौरान, धुनुची नृत्य उत्सव की रौनक बढ़ा देता है. यह नृत्य न केवल देवी की आराधना का एक अंग है, बल्कि सामूहिक एकता, सकारात्मकता और परंपरा की निरंतरता को भी बढ़ावा देता है.

