सरगुजा:- हर साल दिवाली के तीसरे दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है. द्वितीया तिथि के दिन इस पर्व को सरगुजा में मनाया या. इस दिन बहनें अपने भआई की लंबी उम्र और स्वस्थ जीवन की कामना करती है. इसलिए यह व्रत रखती है. भाई दूज की पूजा में बहनों ने पहले भाई को श्राप दिया और उसके बाद फिर जुबान पर कांटा निभाने की परंपरा निभाई.
भाई को विपत्ति से बचाने बहनें देती हैं श्राप: सरगुजा में इस पर्व की अलग तरह की मान्यताएं हैं. इस दिन बहनें अपने भाई को विपत्ति से बचाने के लिए श्राप देती हैं. मान्यता है कि, दूज के दिन भाई की हड्डियों में श्राप रहने से उनकी रक्षा होती है. हालांकि श्राप देने की वजह से बाद में बहनें अपनी जीभ में कांटे भी चुभाती हैं और श्राप देने का प्रायश्चित करती है.
भौरा और जौरा का पुतला बनाया जाता है: इस पूजा में गाय के गोबर से भौरा और जौरा का पुतला बनाया जाता है. उसके बाद इस पुतले को बहनें मूसल और ईंट पत्थरों से कूटती हैं. भाइयों के दुश्मन के प्रतीक के रूप में भौरा और जौरा का पुतला बनाया जाता है. इस पूजा के बाद बहनें भाई को नारियल, मिठाई और चने का प्रसाद खिलाती हैं और तिलक लगाकर आरती उतारकर भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं. उसके बाद भाई को स्वादिष्ट भोजन कराती हैं.
कई तरह की कहानियां हैं प्रचलित: भाईदूज का पर्व देश के कई हिस्सों में अलग अलग तरह से मनाया जाता है. इस पर्व से जुड़ी ज्यादातर कहानियों यमराज और उनकी बहन यमुना से जोड़कर बनाते हैं. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन कई वर्ष बाद यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने पहुंचे थे. बहन ने बड़े ही स्नेह से उन्हें तिलक किया, आरती उतारी और स्वादिष्ट भोजन कराया. उसके बाद खुश होकर यमराज ने वरदान दिया कि आज के दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाएगा और भोजन करेगा वो कभी अकाल मृत्यु नहीं मरेगा.

