कोझिकोड:- केरल में अमीबिक इंसेफेलाइटिस से एक और व्यक्ति की मौत की खबर सामने आई है, जिससे राज्य में इस जानलेवा संक्रमण के फैलने की चिंताएं बढ़ गई हैं. मलप्पुरम निवासी शाजी (51) का कोझिकोड सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया, जहां वह पिछले दो हफ्तों से भर्ती थे. संदेह है कि शाजी की मौत अमीबिक इंसेफेलाइटिस के संक्रमण के कारण हुई हैं. हालांकि, अभी तक आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.
राज्य में एक महीने के भीतर अमीबिक इंसेफेलाइटिस से जुड़ी यह छठी मौत है. स्वास्थ्य अधिकारियों ने अब तक 18 मामलों की पुष्टि की है, 34 अन्य मरीज भी संदिग्ध हैं. चिंता की बात यह है कि विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि इलाज करा रहे कई मरीजों को पहले से ही स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य में सुधार होने की संभावना बहुत कम है.
एक दिन पहले ही, मलप्पुरम के वंदूर निवासी शोभा (56) की भी कोझिकोड मेडिकल कॉलेज में इसी बीमारी से मौत हो गई थी. वर्तमान में, कोझिकोड मेडिकल कॉलेज में दो बच्चों सहित 12 मरीजों का इलाज चल रहा है.
दो दिन पहले, वायनाड के रहने वाले रतीश (45) की मौत हो गई थी, जो अमीबिक इंसेफेलाइटिस से संक्रमित थे. ताजा लहर के कारण राज्य में यह चौथी पुष्ट मौत थी. इससे पहले, कोझिकोड के तीन महीने के शिशु, मलप्पुरम के चेरुर निवासी कन्नेथ रामला (52) और कोझिकोड के थमारासेरी निवासी अनाया (9) की भी संक्रमण के कारण मृत्यु हुई थी.
दिमाग खाने वाला अमीबा क्या है
अमीबिक इंसेफेलाइटिस संक्रमण नेग्लेरिया फाउलेरी के कारण होता है, जिसे आमतौर पर “ब्रेन ईटिंग अमीबा” कहा जाता है. यह झीलों, नदियों, तालाबों और झरनों जैसे गर्म मीठे पानी के स्रोतों में पनपता है. अमीबा मानव शरीर में नाक के माध्यम से प्रवेश करता है- आमतौर पर दूषित पानी में तैरते, नहाते या गोता लगाते समय- और मस्तिष्क तक पहुंचकर एक दुर्लभ लेकिन घातक संक्रमण पैदा कर सकता है जिसे प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस कहा जाता है.
चिकित्सकों के मुताबिक, इसके लक्षण आमतौर पर एक से नौ दिनों के भीतर दिखाई देते हैं और इनमें तेज सिरदर्द, बुखार, उल्टी, गर्दन में अकड़न, घबराहट और दौरा पड़ना शामिल हैं. यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती, न ही यह आमतौर पर पीने के पानी से फैलती है, क्योंकि पेट का अम्ल जीवाणु को मार देता है. इससे बचने के लिए उपाय के रूप में दूषित स्रोतों में गतिविधियों के दौरान नाक में पानी जाने से बचाना है.
स्रोत अभी भी अज्ञात
जांच के बावजूद, स्वास्थ्य अधिकारी अभी तक इस प्रकोप के सटीक स्रोत का पता नहीं लगा पाए हैं. हालांकि यह बीमारी आमतौर पर स्थिर या मीठे पानी के स्रोतों के संपर्क में आने से जुड़ी होती है, कुछ पीड़ितों के रिश्तेदारों का दावा है कि वे नदियों या तालाबों में नहीं गए थे. एक मामले में, तीन महीने के बच्चे को यह बीमारी केवल कुएं के पानी से नहलाने के कारण हुई थी.