क्रिसमस अब बस कुछ ही दिन दूर है। ऐसे में बाजारों से लेकर घरों तक हर जगह लाल-सफेद टोपी, सजे हुए क्रिसमस ट्री और सांता क्लॉज की सजावट नजर आने लगी है। आज के समय में लाल और सफेद रंग ही क्रिसमस और सांता क्लॉज की पहचान बन चुके हैं।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर सांता क्लॉज हमेशा लाल-सफेद रंग के कपड़े ही क्यों पहनते हैं? जब दुनिया में इतने सारे रंग मौजूद हैं, तो फिर यही दो रंग क्यों चुने गए? आइए जानते हैं इसके पीछे छिपी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कहानी।
हमेशा लाल नहीं था सांता का लिबास
बहुत कम लोग जानते हैं कि सांता क्लॉज हमेशा लाल रंग के कपड़े नहीं पहनते थे। शुरुआती यूरोपीय चित्रणों में सेंट निकोलस को हरे, नीले और भूरे रंग के बिशप जैसे कपड़ों में दिखाया गया है।19वीं शताब्दी तक अलग-अलग देशों और संस्कृतियों में सांता क्लॉज के कपड़ों का रंग भी अलग-अलग हुआ करता था।
सांता के लाल-सफेद कपड़ों को लेकर यह धारणा काफी मशहूर है कि यह सब कोका-कोला के 1930 के दशक के विज्ञापन अभियान की देन है। हालांकि, यह पूरी तरह सच नहीं है।कोका-कोला के कलाकार हैडन सन्डब्लॉम ने सांता के आधुनिक रूप को जरूर लोकप्रिय बनाया, लेकिन लाल रंग पहले से ही सांता की छवि से जुड़ा हुआ था। कोका-कोला ने इस लुक को दुनियाभर में फैलाने का काम किया।
लाल और सफेद रंगों का प्रतीकात्मक महत्व सिर्फ एक फैशन नहीं, बल्कि गहरे अर्थ रखते हैं—
लाल रंग: उत्साह, प्रेम, खुशी और उदारता का प्रतीक है, जो क्रिसमस की भावना से मेल खाता है।
सफेद रंग: शांति, पवित्रता और सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ का प्रतीक माना जाता है।
ये दोनों रंग क्रिसमस के पारंपरिक रंगों—लाल और हरे—से भी पूरी तरह मेल खाते हैं।
मीडिया और ग्लोबलाइजेशन का असर
20वीं शताब्दी में मीडिया, फिल्मों, विज्ञापनों और ग्लोबलाइजेशन के जरिए सांता क्लॉज की लाल-सफेद छवि को दुनियाभर में एक समान पहचान मिली। इसी वजह से आज पूरी दुनिया में सांता क्लॉज एक ही तरह के लुक में नजर आते हैं।
इतिहास और परंपरा से जुड़ा है सांता का लुक
अब आप समझ गए होंगे कि सांता क्लॉज का लाल-सफेद लिबास सिर्फ एक परिधान नहीं, बल्कि इसके पीछे इतिहास, संस्कृति और विज्ञापन जगत की लंबी कहानी छिपी है।इसलिए जब भी आप क्रिसमस पर लाल-सफेद कपड़ों में सांता को देखें, तो याद रखें कि यह परंपरा सदियों के सांस्कृतिक विकास का परिणाम है।

