कफ सिरप पीने से एमपी में कई बच्चों की मौत हो गई. इसमें पाए गए कफ सिरप के कारण कई बच्चों में किडनी समेत अन्य अंगों ने काम करना बंद कर दिया और नतीजा कई बच्चों ने दम तोड़ दिया. कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद कई बच्चों के पेरेंट्स सकते में आ गए, क्योंकि सर्दी-खांसी और जुकाम जैसी सामान्य बीमारियों के इलाज में सबसे पहले बच्चों को जो दवा दी जाती है, वह होती है कफ सिरप.
सवाल यह की क्या हर तरह का कफ सिरप बच्चों के लिए सुरक्षित होता है? क्या सभी सिरप एक जैसे असर करते हैं? और क्या हम बिना डॉक्टर की सलाह के सिरप खरीदकर सही कर रहे हैं? इन सवालों के जवाब ढूंढना जरूरी है क्योंकि मामूली सी लापरवाही बच्चों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है. विशेषज्ञ डॉक्टरों का मानना है कि कफ सिरप को लेकर सबसे बड़ी गलती ‘सेल्फ-मेडिकेशन’ की होती है. यानी डॉक्टर की सलाह के बिना दवा देना. अक्सर माता-पिता इंटरनेट या दुकानदार की राय पर भरोसा कर लेते हैं, जो बच्चों के शरीर पर गलत असर डाल सकती है.
हर कफ सिरप बच्चों के लिए नहीं होता सुरक्षित
Medical Physician, DDU Hospital डॉ. कपिल शर्मा कहते हैं कि ‘बच्चों के लिए दवा का चयन और डोज दोनों बहुत सोच-समझकर तय करने पड़ते हैं. कफ सिरप कोई सामान्य दवाई नहीं है. इसमें कई ऐसे केमिकल कंपाउंड्स होते हैं, जो बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं, बच्चों के नाजुक अंगों पर असर डाल सकते हैं. बच्चों में लिवर और किडनी की प्रोसेसिंग कैपेसिटी बहुत सीमित होती है, इसलिए जो दवा बड़े लोगों को राहत देती है, वही बच्चे में टॉक्सिक असर पैदा कर सकती है. खांसी के इलाज में सबसे पहले कारण समझना जरूरी है.’
क्या सिरप ही खांसी का एकमात्र इलाज
अक्सर माता-पिता सोचते हैं कि खांसी का एकमात्र इलाज कफ सिरप है, लेकिन क्या हर खांसी का इलाज सिरप ही है? इस बारे में डीडीयू अस्पताल शिमला में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अंकुर धर्माणी कहते हैं कि ‘हर खांसी के पीछे एक कारण होता है. वायरल, एलर्जिक या एसिडिटी से जुड़ा. डॉक्टर उस कारण का इलाज करते हैं, न कि सिर्फ खांसी का. अगर वायरल है तो ज्यादातर मामलों में सिरप की जरूरत नहीं होती. बहुत बार सिर्फ भाप, आराम, हल्का गर्म पानी या रूम ह्यूमिडिफायर इस्तेमाल करने से खांसी अपने आप ठीक हो जाती है. दो हफ्ते से ज़्यादा खांसी बनी रहे, या बच्चे को सांस लेने में दिक्कत, तेज बुखार, सुस्ती या भूख न लगना जैसे लक्षण हों तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए.’
डोज बच्चे के वजन से तय होती है, उम्र से नहीं
डॉ. अंकुर धर्माणी ने कहा कि ‘बच्चों के लिए दवा की मात्रा उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि, वजन के आधार पर तय की जाती है. कई बार माता-पिता सोचते हैं कि चार साल के बच्चे को आधा चम्मच और छह साल के बच्चे को पूरा चम्मच सिरप दे दिया जाए, जबकि ऐसा करना गलत है. हर बच्चे का वजन, मेटाबॉलिज़्म और रोग की स्थिति अलग होती है. इसलिए डॉक्टर पहले वजन देखकर सही डोज तय करते हैं. बड़े लोगों वाला कफ सिरप कभी भी बच्चों को नहीं देना चाहिए, भले ही बहुत कम मात्रा में क्यों न हो. बड़े लोगों की सिरप में कुछ ऐसे ड्रग्स होते हैं, जो बच्चों के नर्वस सिस्टम को डिप्रेस कर सकते हैं. बच्चे में नींद, कमजोरी या सांस रुकने जैसी स्थिति भी बन सकती है.
डॉ. कपिल शर्मा के अनुसार हल्की खांसी या वायरल में बच्चों को सिरप देने की बजाय घरेलू उपाय अपनाना बेहतर है. जैसे:
- गुनगुना पानी देना
- भाप दिलाना
- रूम ह्यूमिडिफ़ाई रखना
- और एक साल से बड़े बच्चों को आधा चम्मच शहद देना
लेकिन उन्होंने ये चेतावनी देते हुए कहा कि शहद एक साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे इंफेंट बोटुलिज़्म जैसी समस्या हो सकती है.
पुरानी दवा या खुले सिरप का इस्तेमाल न करें
सेवानिवृत बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एलएस चौधरी बताते हैं कि ‘अक्सर घरों में पहले के इलाज से बची हुई सिरप की बोतलें रखी होती हैं. माता-पिता सुविधा के लिए वही दवा दोबारा दे देते हैं. ये बहुत खतरनाक आदत है. सिरप खुलने के बाद उसमें बैक्टीरिया या फंगस विकसित हो सकते हैं. भले ही एक्सपायरी डेट आगे की हो, लेकिन बोतल खुलने के 30 से 45 दिन बाद उसका उपयोग नहीं करना चाहिए. सिरप का रंग, गंध बदला हुआ लगे तो तुरंत फेंक दें. कई बार नकली या मिलावटी सिरप बाजार में आ जाते हैं, जिनका असर बच्चों के शरीर पर घातक हो सकता है, ऐसे सिरप से उल्टी, चक्कर, सांस लेने में तकलीफ और दौरे तक हो सकते हैं.’
लेबल पढ़ना और बैच नंबर जांचना क्यों जरूरी है
कफ सिरप खरीदते समय माता-पिता को यह जरूर देखना चाहिए कि बोतल पर मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट, बैच नंबर और ड्रग लाइसेंस नंबर स्पष्ट लिखा हो. डॉ. L.S चौधरी कहते हैं कि ‘अगर सिरप पर बैच नंबर मिटा हुआ है या बोतल पर झूठी जानकारी दी गई है तो वो दवा न खरीदें. दवा हमेशा लाइसेंस प्राप्त फॉर्मेसी से ही लें और बिल जरूर रखें. यह भविष्य में शिकायत या जांच के समय काम आता है.