नई दिल्लीः- सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश भर की जेलों में बंद लगभग 4.5 लाख विचाराधीन कैदियों के मताधिकार की मांग वाली याचिका पर केंद्र सरकार और भारत निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया. भारत के मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष इस मामला में सुनवायी हुई.
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ के समक्ष पक्ष रखा. भूषण ने कुछ मिनट तक बहस की, जिसके बाद पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी करने का फैसला किया. भूषण ने तर्क दिया कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत लगाया गया वर्तमान प्रतिबंध संवैधानिक गारंटियों और अंतर्राष्ट्रीय लोकतांत्रिक मानदंडों का उल्लंघन करता है.
याचिका पंजाब के पटियाला निवासी सुनीता शर्मा ने दायर की है. याचिकाकर्ता ने इस मामले में विधि एवं न्याय मंत्रालय के माध्यम से केंद्र और चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया है. याचिका में तर्क दिया गया है कि वर्तमान में जेलों में बंद 4.5 लाख से ज़्यादा लोग पूर्व-परीक्षण, विचाराधीन या गैर-अंतिम रूप से दोषी ठहराए गए कैदी हैं.
याचिका में तर्क दिया गया है कि भ्रष्ट या चुनावी प्रथाओं से संबंधित अपराधों के लिए बंद लोगों को छोड़कर, धारा 62(5) के तहत मौजूदा व्यापक प्रतिबंध एक बड़ी आबादी को मताधिकार से वंचित करता है, जो कानून के तहत निर्दोषता के अनुमान का लाभ उठाती रही है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) जेलों में बंद व्यक्तियों के मतदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है, चाहे वे दोषी ठहराए गए हों या केवल मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हों.
याचिका में न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की गई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिन कैदियों को चुनावी अपराधों या भ्रष्टाचार का दोषी नहीं ठहराया गया है, उन्हें मनमाने ढंग से उनके लोकतांत्रिक मतदान के अधिकार से वंचित न किया जाए.