रायपुर:- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा में 1975 से विकास परिषद एक स्कूल का संचालन कर रही है. इस स्कूल में करीब 1000 बच्चे हैं. यहां नर्सरी से लेकर 12 वीं तक पढ़ाई होती है. खास बात यह है कि इस स्कूल के आर्थिक रूप से कमजोर 300 बच्चों को फ्री में पढ़ाया जाता है.
विकास परिषद (नूतन स्कूल) शिक्षा और कैरियर गाइडेंस के संचालक किरोड़ीमल अग्रवाल ने बताया कि स्लम एरिया के लगभग 1000 बच्चे नर्सरी से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई करते हैं, जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि काफी जद्दोजहद वाली है. स्कूल में जो शिक्षा का पाठ्यक्रम है, उससे हटकर हमने उनको एक विचार निर्माण की शिक्षा दी है.
रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के टिकरापारा में 1975 से विकास परिषद एक स्कूल का संचालन कर रही है. इस स्कूल में करीब 1000 बच्चे हैं. यहां नर्सरी से लेकर 12 वीं तक पढ़ाई होती है. खास बात यह है कि इस स्कूल के आर्थिक रूप से कमजोर 300 बच्चों को फ्री में पढ़ाया जाता है.
विकास परिषद (नूतन स्कूल) शिक्षा और कैरियर गाइडेंस के संचालक किरोड़ीमल अग्रवाल ने बताया कि स्लम एरिया के लगभग 1000 बच्चे नर्सरी से लेकर 12वीं तक की पढ़ाई करते हैं, जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि काफी जद्दोजहद वाली है. स्कूल में जो शिक्षा का पाठ्यक्रम है, उससे हटकर हमने उनको एक विचार निर्माण की शिक्षा दी है.
पांच संकल्प के बारे में जानकारी : स्कूल की छात्रा भाविका शर्मा ने बताया कि स्कूल में शिक्षा के अलावा पांच तरह के संकल्प बताए गए हैं. उन्होंने कैसे संकल्प लिया. इसके बारे में उन्होंने ईटीवी भारत को जानकारी दी.
पहला संकल्प :सुबह सोकर उठते ही मैंने संकल्प लिया कि मुझे डॉक्टर, कलेक्टर, टीचर या फिर पुलिस अधिकारी बनना है. इसके लिए मैंने अच्छी पढ़ाई और अच्छी आदतों का पालन किया.
दूसरा संकल्प: नाश्ता करने से पहले मैंने संकल्प लिया कि मुझे डॉक्टर कलेक्टर टीचर या पुलिस बनना है. इसके लिए मैं घर पर ही 8 से 10 घंटे तक पढ़ाई की.
तीसरा संकल्प: स्कूल जाने के पहले मैंने संकल्प लिया कि मुझे डॉक्टर कलेक्टर या पुलिस बनना है. इसके लिए मैं स्कूल जा रही हूं.
चौथा संकल्प: स्कूल से घर आते वक्त मैं संकल्प ले रही हूं की मुझे डॉक्टर, कलेक्टर, टीचर या फिर पुलिस अधिकारी बनना है. इसके लिए मुझे अच्छी आदतों का पालन करना है. जैसे टीवी नहीं देखना है. मोबाइल नहीं चलाना है. जिद नहीं करना है. गुस्सा नहीं करना है. झूठ नहीं बोलना है.
पांचवां संकल्प: रात में सोने से पहले मैंने संकल्प लिया कि मुझे डॉक्टर, कलेक्टर, टीचर या फिर पुलिस अधिकारी बनना है. आज का मेरा जो टास्क था. वह पूरा हुआ या नहीं. नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ ? क्या गलती थी ये गलती मैं दोबारा ना करूं. इसके लिए मुझे ईश्वर शक्ति प्रदान करें.
क्या कहते हैं स्कूल के टीचर्स ?: स्कूल की वाइस प्रिंसिपल सुनीता रायकवाड ने बताया कि स्कूल में छोटू और बहना के नाम से एक किरदार चलता है. इस किरदार को रखने के पीछे मकसद यह है कि अगर किसी बच्चे का इस तरह का नाम है तो ऐसे बच्चों को दूसरे बच्चे ना चिढाएं. छोटू और बहना के जरिए बच्चों को मैसेज दिया जाता है कि खाना कैसे खाना चाहिए. सड़क कैसे पार करना चाहिए. कोई दिव्यांग है तो उसकी सहायता कैसे करनी चाहिए. परिवार में कैसे रहते हैं.
स्कूल की प्रिंसिपल डॉक्टर ममता पांडेय ने बताया कि इस स्कूल में गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं. ऐसे परिजन जिनकी इनकम कम है और बच्चों को घर में उचित माहौल नहीं मिल पाता. ऐसे बच्चों को इस स्कूल में शिक्षा दी जाती है. इसके साथ ही कई दूसरी एक्टिविटी भी बच्चों को बताई जाती है. स्कूल में बच्चों को रोजगार परक शिक्षा भी उपलब्ध कराई जाती है.
स्कूल में कैसे होती है पढ़ाई ?: नर्सरी से लेकर कक्षा पांचवी तक की क्लास पहली पाली में लगाई जाती है. वहीं कक्षा छठवीं से लेकर कक्षा 12 वीं की क्लास दूसरी पाली में संचालित होती है. खास बात यह भी है कि स्कूल के पास ही विकास परिषद, एक नि:शुल्क डिस्पेंसरी का भी संचालन करती है. इसमें स्कूल के बच्चे, उनके परिजन और मोहल्लेवासियों का मुफ्त इलाज किया जाता है.