रायपुर :- जीएसटी रिफॉर्म के बाद कंपनियां अब अपने प्रोडक्ट्स की कीमतें घटाने के बजाय उपभोक्ताओं को अतिरिक्त क्वांटिटी देने की नीति पर काम कर रही हैं. यानी रेट वही रहेगा, लेकिन ग्राहकों को अब उसी पैक में पहले से ज़्यादा मात्रा मिलेगी.इसे कंपनियां ‘वैल्यू एडिशन ऑफर’ बता रही हैं. व्यापारियों और उपभोक्ता संगठनों ने इसे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने वाला कदम बताया है.जबकि जीएसटी विभाग का कहना है कि ऐसी नीतियां पारदर्शिता के साथ लागू की जानी चाहिए.
कंपनियों की नई ‘प्राइसिंग पॉलिसी’ : जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स स्ट्रक्चर में हुए सरलीकरण से कंपनियों की इनपुट लागत में कमी आई है.पहले जहां अलग-अलग टैक्स स्लैब और राज्य-स्तरीय करों का बोझ था, अब एक समान टैक्स व्यवस्था से लागत घटने लगी है. ऐसे में कई कंपनियां एमआरपी कम करने के बजाय उत्पाद की क्वॉटिटी बढ़ाकर ग्राहकों को फायदा दे रही हैं.
दो फॉर्मूले पर कंपनियां कर रही काम : वही एक बड़ी एफएमसीजी कंपनी के रीजनल मैनेजर (मार्केटिंग)जेपी शुक्ला का कहना है कि जीएसटी के दर में कमी आने के बाद कच्चे माल से लेकर उत्पादन तक कई स्थानों पर राहत मिली है. जीएसटी स्लैब बदलने से जो अंतर आ रहा है, उसमें कंपनियां दो फॉर्मूले में काम कर रही हैं. पहले से जो माल बाजार में हैं, उसमें घटे हुए जीएसटी के रेट पर माल बेचने के लिए सभी डीलर डिस्ट्रीब्यूटर स्टॉकिस्ट और रिटेलर को कह दिया गया है. वहीं नए प्रोडक्शन में जिस रेट पर उस पदार्थ को बेचा जाता था, दाम वही रखा जाएगा ,लेकिन उसकी मात्रा बढ़ा दी जाएगी.
उपभोक्ता के नफा-नुकसान का विश्लेषण
नफा
- उपभोक्ता को वही कीमत में पहले से ज्यादा मात्रा मिल रही है, जिससे औसतन प्रति यूनिट लागत घटती है।
- बढ़ी हुई मात्रा से दीर्घावधि में घरेलू बजट पर सकारात्मक असर।
- प्रतिस्पर्धी बाजार में “अधिक वैल्यू” पाने का अवसर।
नुकसान
- कंपनियाँ अक्सर सीमित समय के ऑफर के रूप में यह बदलाव करती हैं; स्थायी नीति न होने से भ्रम की स्थिति बनती है।
- अगर पैकिंग का आकार थोड़ा बड़ा किया गया हो पर वास्तविक मात्रा कम हो, तो ग्राहक को गुमराह किया जा सकता है।
- पारदर्शिता की कमी से वास्तविक ‘फायदा’ अस्पष्ट रहता है।
उपभोक्ता विशेषज्ञों के अनुसार, खरीदारों को पैक पर दी गई जानकारी (नेट वेट / लीटर / ग्राम) ध्यान से देखनी चाहिए, ताकि उन्हें वास्तविक मूल्य का अंदाजा रहे.
क्वांटिटी बढ़ाना कानून के खिलाफ नहीं : जीएसटी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कंपनियां मूल्य में बदलाव किए बिना क्वांटिटी बढ़ा सकती हैं, यह टैक्स कानून के खिलाफ नहीं है.बशर्ते उत्पाद की एमआरपी और पैक साइज की जानकारी स्पष्ट रूप से दी गई हो. किसी भी तरह की भ्रामक मार्केटिंग को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत रोका जा सकता है.
वहीं मार्केट एनालिस्ट के मुताबिक यह नीति ग्राहकों को आकर्षित करने का स्मार्ट तरीका है. इससे कंपनियां अपने प्रोडक्ट की प्राइस इमेज को बरकरार रख सकती हैं, ग्राहक को भी ‘एक्स्ट्रा’ का अनुभव होता है. यह ‘पोस्ट-जीएसटी मार्केट इकॉनॉमी’ की नई दिशा है.