बिहार:- गया जी में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 6 सितंबर से शुरू हो रहा है, जिसमें लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए पहुंचते हैं. लेकिन, इसी मोक्षनगरी में एक ऐसा अद्भुत स्थल भी है, जहां पितरों के लिए नहीं, बल्कि जीते जी खुद के लिए पिंडदान किया जाता है. जनार्दन मंदिर में आत्म पिंडदान की सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवित है. मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में शांति और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
देश का पहला मंदिर जहां होता है आत्म पिंडदान: मोक्षनगरी गयाजी देश-विदेश में पितृपक्ष मेले और पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है. लेकिन, यहां एक ऐसा अद्वितीय मंदिर भी है. भगवान जनार्दन मंदिर स्थित यह पिंडवेदी देश की पहली ऐसी जगह मानी जाती है, जहां आत्म पिंडदान की परंपरा सदियों से चली आ रही है.गया जी के मंगला गौरी मंदिर के पास पहाड़ी पर स्थित भगवान जनार्दन मंदिर देश का पहला ऐसा स्थल माना जाता है, जहां आत्म पिंडदान की परंपरा निभाई जाती है.
सबसे ज्यादा साधु संन्यासी करते हैं पिंडदान: इस पिंडवेदी में सबसे अधिक संख्या साधु-संन्यासियों, वैराग्य धारण करने वाले गृहस्थों, निसंतान या उन लोगों की होती है जिन्हें अपनी संतान पर भरोसा नहीं होता. मंदिर में विराजमान भगवान जनार्दन की काले पत्थर की प्रतिमा को चमत्कारी माना जाता है. श्रद्धालु मानते हैं कि आत्म पिंडदान से जीवन में शांति और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
नि:संतान भी करते हैं खुद का पिंडदान: साधु संन्यासियों के अलावे यहां वैसे लोग भी आते हैं, जो उनके वंश के लोग उनका पिंडदान नहीं करेंगे. ऐसे लोग भी यहां खुद का श्राद्ध करते हैं. वही, नि:संतान व्यक्ति भी यहां खुद का पिंडदान करते हैं. इस तरह साधु संन्यासियों के अलावे जिनका कोई न हो, घर गृहस्थी के वंश पर भरोसा न हो, वैसे लोग भगवान जनार्दन के मंदिर में आकर पिंडदान करते हैं.
पिंडवेदी में विराजित भगवान जनार्दन: गया जी के मुख्य पिंडवेदी में स्थित भगवान जनार्दन का मंदिर आत्म पिंडदान के लिए विशेष माना जाता है. यह वेदी अन्य पिंडवेदियों से अलग है क्योंकि यहां लोग अपने स्वयं के मोक्ष के लिए पिंडदान करते हैं.
मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति: भगवान जनार्दन विष्णु के रूप में चतुर्भुज मुद्रा में विराजमान हैं, जिनका एक हाथ पिंड ग्रहण करने की मुद्रा में है, जो आत्म पिंडदान की महत्ता दर्शाता है. यह प्रतिमा अत्यंत दुर्लभ और चमत्कारी मानी जाती है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां आत्म पिंडदान करने वाले को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पिंडवेदी का वर्णन पुराणों में: भगवान जनार्दन के इस मंदिर पिंडवेदी का वर्णन पुराणों में भी मिलता है. यह मंदिर आत्म पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है और यहां भगवान विष्णु के रूप जनार्दन की पूजा होती है. कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जाती है. श्रद्धालु मानते हैं कि यहां भगवान जनार्दन भक्तों की मुरादें पूरी करते हैं. यह स्थान आत्म पिंडदान के साथ-साथ आस्था का भी बड़ा केंद्र है, जहां इच्छाएं पूरी होने का आशीर्वाद मिलता है.
जागृत अवस्था में दर्शन देते हैं भगवान जनार्दन: इस मंदिर को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. यहां के लोग भगवान जनार्दन के चमत्कार को बताते हैं. लोगों के अनुसार विशेष दिनों में भगवान जनार्दन जागृत अवस्था में भक्तों को दर्शन देते हैं. इस तरह मंदिर पिंडवेदी के रूप में भी है और देश में ऐसा कोई मंदिर नहीं है, जहां लोग आत्म पिंडदान करने को आते हैं.
मंदिर में आत्माओं का वास: वहीं, जाता है कि यहां भूत प्रेतों से भी जुड़ी कई प्रकार की कथाएं हैं. इस मंदिर में आत्माओं का भी वास रहता है. हालांकि यहां आने वाले भक्तों को इससे कोई नुकसान नहीं होता है.
मंदिर के शिखर पर है स्वर्ण कलश: मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश भी है. यहां के पुजारी प्रभाकर कुमार बताते हैं कि मंदिर के शिखर पर एक स्वर्ण कलश है. स्वर्ण कलश से जो भी कोई स्वर्ण की चोरी करता है तो उसकी मौत हो जाती है या फिर विभिन्न प्रकार की विपत्ति उसपर आ जाती है, जिसके कारण मंदिर के ऊपर हिस्से तक पहुंचाने का जो गुफानुमा रास्ता था, उसे बंद कर दिया गया है, ताकि कोई वहां पहुंच न सके और स्वर्ण कलश सुरक्षित रहे.

