नई दिल्ली :- चेहरे की झुर्रियां, जिसे पहले उम्र के तजुर्बे के तौर पर देखा जाता था. इसे अब आत्मसम्मान और सुंदरता पर हमला माना जाने लगा है. आज की डिजिटल पीढ़ी उम्र के असर को चेहरे पर दिखना गुनाह मान चुकी है.जहां पहले एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट सिर्फ बड़ी उम्र के लोगों की जरूरत मानी जाती थी, वहीं अब 20 से 30 साल की उम्र के युवा भी ‘प्रीवेंशन इज बेटर दैन क्योर’ के नाम पर बोटॉक्स लगवा रहे हैं, लेकिन क्या ये उपाय सुरक्षित हैं? विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इन मेडिकल प्रोसिजर को बिना सही जानकारी और उचित निगरानी के बिना अपनाया जाए, तो यह जीवन के लिए घातक भी बन सकते हैं.
एंटी एजिंग ट्रीटमेंट क्या है और क्यों लिया जाता है
दरअसल ये ऐसा उपाय या प्रक्रियाएं जो उम्र बढ़ने के लक्षणों को कम करने या छुपाने का दावा करती हैं. इसमें त्वचा की झुर्रियों को हटाना, चेहरे का ढीलापन कम करना, त्वचा में कसावट लाना और यंग लुक बनाए रखना शामिल होता है. किस प्रकार से ये ट्रीटमेंट किया जाता है इसके क्या खतरे हैं और इसे करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. इसे लेकर हमने शिमला में त्वचा रोग विशेषज्ञ नेहा सूद से बातचीत की.
एंटी एजिंग एक मेडिकल प्रक्रिया
वरिष्ठ त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉ. नेहा सूद ने कहा, ‘खूबसूरत दिखना चाहना गलत नहीं है, लेकिन इसके लिए जो तरीका अपनाया जा रहा है, वो बेहद चिंता का विषय है. एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट एक मेडिकल प्रक्रिया है, न कि कॉस्मेटिक फैंसी ट्रेंड. एंटी-एजिंग इंजेक्शन उन प्रक्रियाओं का हिस्सा हैं जिनमें चेहरे की झुर्रियां, ढीलापन या बढ़ती उम्र के अन्य लक्षणों को कम करने का दावा किया जाता है. इन ट्रीटमेंट्स की कुछ श्रेणियां हैं.’
एंटी एजिंग की तीन प्रक्रियाएं
एंटी एंजिंग में तीन श्रेणियां शामिल हैं. इसमें बोटॉक्स, डर्मल फिलर और स्किन बूस्टर शामिल हैं. इन तीनों की अलग अलग प्रक्रियाए हैं और तीनों को अलग अलग कार्यों के लिए अपनाया जाता है: डॉ. नेहा सूद ने बताया कि:
बोटॉक्स : इससे झुर्रियां कम दिखती हैं. बोटॉक्स को कम मात्रा में चेहरे की उन मांसपेशियों में इंजेक्ट किया जाता है, जहां झुर्रियां बनने लगती हैं जैसे माथा, आंखों के किनारे या भौंहों के बीच. इससे झुर्रियां गायब हो जाती हैं और स्किन टाइट दिखने लगती है.
डर्मल फिलर: त्वचा के नीचे हायलूरोनिक एसिड जैसी सामग्री डाली जाती है, जिससे खोई हुई मात्रा वापस आती है. ये त्वचा को फुलाव देते हैं, जिससे गाल, होंठ या आंखों के नीचे के गड्ढे भर जाते हैं.
स्किन बूस्टर / PRP : त्वचा की गुणवत्ता सुधारने वाले उपचार, जिनमें शरीर से लिया गया प्लाज्मा इस्तेमाल होता है. स्किन बूस्टर्स का काम चेहरे की त्वचा को भीतर से हाइड्रेट करना और ग्लो बढ़ाना होता है. ये भी इंजेक्शन के माध्यम से दिए जाते हैं और इनके लिए भी प्रशिक्षित विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है.बोन्स मसल्स को रिलैक्स करता है, जबकि फिलर्स वॉल्यूम को फिल करते हैं. दोनों का कार्य, प्रकृति और उपयोग अलग है.-डॉ. नेहा सूद
परमानेंट नहीं टेंपरेरी इलाज
एंटी एजिंग का मकसद उम्र की निशानियों को धीमा करना है, लेकिन इनका असर टेंपरेरी होता है और इन्हें समय-समय पर दोहराना पड़ता है. हाल ही में टियर-2 शहरों में बोटोक्स ट्रीटमेंट देने वाले सैलून और क्लिनिक्स की संख्या तेजी से बढ़ी है. सिर्फ महिलाएं ही नहीं, अब पुरुष भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं. क्या बोटॉक्स, फिलर और स्किन बूस्टर ट्रीटमेंट कहीं भी लिया जा सकता है या इसके लिए किसी विशेषज्ञ की जरूरत होती है? इस पर त्वचा रोग विशेषज्ञ नेहा सूद ने बताया कि ‘भारत में इन प्रोसिजर को MD Dermatologist या Plastic Surgeon ही करना चाहिए. इसके लिए न केवल विशेष ट्रेनिंग बल्कि सरकारी लाइसेंस और मेडिकल एथिक्स का पालन करना अनिवार्य होता है. फेशियल एनाटॉमी की गहरी समझ और मेडिकल आपात स्थिति से निपटने की क्षमता सिर्फ एक प्रशिक्षित डॉक्टर के पास होती है.’
छोटे कस्बों में बिना अनुमति क्लीनिक और बढ़ता खतरा
बड़ी चिंता की बात यह है कि अब ऐसे ट्रीटमेंट कई छोटे कस्बों और ब्यूटी पार्लरों में भी होने लगे हैं. बिना किसी लाइसेंस या मेडिकल ट्रेनिंग के ये काम हो रहा है. कई बार पार्लर संचालक इंटरनेट से सीखी तकनीक के आधार पर इंजेक्शन लगाते हैं और ग्राहक को इस बात की भनक भी नहीं होती कि इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं. कई बार लड़कियां और लड़के इंस्टाग्राम रील्स देखकर सीधे बोटॉक्स करवाने आ जाते हैं, लेकिन उन्हें यह समझ नहीं होता कि ये एक मेडिकल प्रोसिजर है, जिसमें सही मात्रा, सही जगह और सही तकनीक बेहद जरूरी है. बिना ट्रेंड डॉक्टर या सर्टिफाइड एक्सपर्ट के द्वारा किया गया बोटॉक्स या फिलर गलत परिणाम दे सकता है. डॉ. नेहा बताती हैं कि ‘नकली या एक्सपायर्ड उत्पादों के कारण शरीर का रिएक्शन जानलेवा हो सकता है. साथ ही कई बार इसके साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं जैसे-एलर्जी और जलन, इंजेक्शन साइट पर सूजन, दर्द या गांठ, संक्रमण इत्यादि.’
क्या भारत में इस पर कोई गाइडलाइन या रेगुलेशन है
डॉ नेहा सूद कहती है कि ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया और CDSCO जैसी एजेंसियां क्लिनिक और डॉक्टरों के लिए स्पष्ट गाइडलाइन निर्धारित करती हैं, जैसे:
केवल रजिस्टर्ड डॉक्टर को ही ये ट्रीटमेंट देने की अनुमति.
बिना लाइसेंस क्लिनिक पर बैन.
ब्रांड और दवाओं का रेगुलेशन.
ग्राहक की सहमति और उचित डॉक्यूमेंटेशन अनिवार्य.
कहां है सबसे ज्यादा खतरा
इस दौड़ में शामिल होने से पहले यह सोचना जरूरी है. क्या हम खुद को बेहतर बना रहे हैं, या दूसरों से बेहतर दिखने की होड़ में खो रहे हैं? साथ ही ध्यान रखना भी जरूरी है कि अगर जहां से हम ये ट्रीटमेंट ले रहे हैं वो इसके लिए अधिकृत है भी या नहीं. अगर अनट्रेंड स्टाफ इंजेक्शन दे तो खतरा कितना बड़ा हो सकता है? देश के कई छोटे शहरों में पार्लर या टेक्नीशियन द्वारा बोटॉक्स या फिलर्स दिए जाने के केस सामने आई हैं, जिनके परिणाम खतरनाक रहे हैं. अनधिकृत जगहों पर ट्रीटमेंट लेने पर खतरा बढ़ जाता है. गलत नस में इंजेक्शन जाने से लकवा, ब्रेन स्ट्रोक या परमानेंट स्किन डैमेज हो सकता है.
बोटॉक्स, फिलर्स और स्किन बूस्टर्स सौंदर्य की दुनिया में क्रांति लाए हैं, लेकिन उनके पीछे छुपे खतरों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है. जागरूकता, सही जानकारी और संतुलन ही आपकी असली सुंदरता की कुंजी है. इस दौड़ में शामिल होने से पहले यह सोचना, समझना और जानना जरूरी है कि ट्रीटमेंट से पहले कौन सी सावधानी जरूरी है. क्या इसके लिए किसी टेस्ट की जरूरत होती है? डॉ. नेहा सूद बताती हैं कि स्किन टाइप, हॉर्मोनल स्थिति, इम्यून रिस्पॉन्स इन सब पर निर्भर करता है कि ट्रीटमेंट किसके लिए सुरक्षित है. एंटी एजिंग ट्रीटमेंट से पहले कुछ टेस्ट जरूरी होते हैं जैसे:
एलर्जी पैच टेस्ट
मेडिकल हिस्ट्री की जांच.
दवा या इंजेक्शन के कंपोजिशन की जानकारी ग्राहक से ली जाती है.
क्या युवाओं के लिए ये ट्रीटमेंट्स सुरक्षित हैं
डॉ. नेहा का कहना है कि आजकल 18 से 25 वर्ष के युवा भी बोटॉक्स और फिलर्स का रुख कर रहे हैं, जो सही नहीं हैं. इस उम्र में शरीर प्राकृतिक रूप से कोलेजन और इलास्टिन बनाता है. जरूरत न होते हुए भी ट्रीटमेंट लेना स्किन की प्राकृतिक रचना बिगाड़ सकता है. सिर्फ अच्छा दिखने के लिए अपनी स्किन की उम्र को छेड़ना सही नहीं.
सोशल मीडिया का दबाव, ग्लैमर का प्रलोभन
इंस्टाग्राम पर ब्यूटी इन्फ्लुएंसर्स की ओर से दिखाए जा रहे Before-After वीडियो युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं. बिना जोखिम समझे सिर्फ परफेक्ट लुक के लिए लोग असुरक्षित कदम उठा रहे हैं.
निडल्स से ‘यंग’ बनाए रखने की इस रेस में लोग भूल रहे हैं कि क्या ये एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स वाकई खूबसूरती बढ़ा रहे हैं, या फिर धीरे-धीरे नई परेशानियों का बीज बो रहे हैं? एंटी-एजिंग ट्रीटमेंट्स का विज्ञान काफी उन्नत है और सही परिस्थिति में योग्य डॉक्टर द्वारा किया गया उपचार प्रभावी हो सकता है, लेकिन बिना जानकारी, बिना मेडिकल सुपरविजन और सिर्फ बाहरी खूबसूरती के लिए किया गया प्रयोग कई बार खतरनाक हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि ट्रेंड के झांसे में न आएं.