डोंगरगढ़ : धर्मनगरी डोंगरगढ़ अपने प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म को संजोकर रखने वाला एक ऐसा शहर जहां मां शक्ति की साक्षात कृपा है। सूरज की पहली किरण मां के चरणों को स्पर्श करने आती है यहां की हवाएं भी भक्ति की सुर में गाती है। डोंगरगढ़, जिसे प्राचीन समय में पहले कामावती नगरी के नाम से जाना जाता था। जो आज का डोंगरगढ़ है। “डोंगढ़” का मतलब होता है, पहाड़ और गढ़ का हो मतलब होता है ,किला यानि चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ शहर।
2200 साल पुराना है इतिहास
मां बम्लेश्वरी का अलौकिक धाम, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में पहाड़ी पर है। मां के दरबार में दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर आते हैं। 11 सौ सीढ़ियां चढ़ने के बाद मां के दर्शन होते है। लगभग 11 00 फिट ऊँची पहाड़ों में मां बम्लेश्वरी बगलामुखी रूप में विराजित है। मंदिर का इतिहास 2200 साल पुराना माना जाता है। हर साल क्वार और चैत्र में नवरात्री का महापर्व धूमधाम से मनाया जाता है। दोनों नवरात्र में माँ के दरबार में ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किया जाता है।
राजा कामसेन मां बम्लेश्वरी के बड़े उपासक थे
महाराज कामसेन मां बगलामुखी के बहुत बड़े उपासक थे। राजा ने अपने तपोबल और भक्ति से प्रसन्न कर मां से पहाड़ी में विराजित होने की विनती की। जिसके बाद मां बगलामुखी बम्लेश्वरी के स्वरूप में विराजमान हुई। घना जंगल और दुर्गम रास्ता होने के कारण भक्तों का माता के दर्शन करने पहुंचना अति दुर्लभ था। राजा कामसेन प्रजा ने पुनः माता से पहाड़ों के नीचे विराजित होने के लिए विनती की। राजा कामसेन की भक्ति से प्रसन्न होकर पहाड़ों से नीचे छोटी मां बम्लेश्वरी और मंझली मां रणचंडी के स्वरूप में जागृत अवस्था में विराजमान हुई। दोनों माताएं भक्तों के कल्याण करने जागृत अवस्था में विराजमान हैं।
उज्जैन से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास मध्य प्रदेश के उज्जैन से जुड़ा है, मां बम्लेश्वरी को उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुलदेवी भी कहा जाता है। मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी स्वरूप है उन्हें मां दुर्गा का रूप माना जाता है। राजा विक्रमादित्य भी मां बगलामुखी के बड़े उपासक रहे है। धार्मिक नगरी में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं नीचे स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। ऊपर पहाड़ी पर मुख्य मंदिर स्थित है।
मां बम्लेश्वरी की महत्ता
मां के दरबार में सच्चे मन से जो भी मांगा जाता है सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यही कारण है की देश- विदेश से भी लोग मां बम्लेश्वरी देवी के दर्शन को आते हैं। भक्तों का कहना है की जिन्हें संतान नहीं होते या जीवन में कोई भी परेशानी आती है, तो लोग पूरे सच्चे मन से माता के दरबार में मन्नते मांगते हैं और वह पूरी होती है। माँ के प्रति भक्तों अपनी अलग- अलग आस्था है। कुछ लोग मन्नते पूरी होने पर पैदल चलकर मां के दर्शन को आते है। वहीं कई लोग घुटनों के बल से ऊपर पहाड़ों में विराजमान मां के दर्शन हेतु जाते हैं।
नवरात्रि पर्व में होती है माँ की विशेष पूजा
नवरात्रि पर्व में माता जी के नौ रूपों की पूजा- अर्चना वैदिक कर्मो और मंत्रों से किया जाता है। विशेष पूजा कालरात्रि सप्तमी को किया जाता है। ऊपर पहाड़ों में प्रज्वलित ज्योति कलश में एक माई ज्योत को ऊपर कुण्ड में सुबह 4 बजे प्रज्वलित किया जाता है, बाकि के ज्योति कलश में कुण्ड के पानी का छीटा देकर शान्त किया जाता है। नीचे मां के मंदिर में प्रज्वलित सभी ज्योति कलश को शोभा यात्रा निकालते हुए माता शीतला मन्दिर पहुंचते है और दोनों मंदिरों के माई ज्योत का आपस में मिलन होता है। उसके बाद प्राचीन महावीर तालाब में सभी ज्योति कलश को विसर्जित किया जाता है।
मंदिर के दरवाजे में लगाया गया 61 किलो चांदी का परत
इस बार नवरात्री के पहले दिन यानी एकम को ऊपर पहाड़ों में विराजमान मां बमलेश्वरी मंदिर के दरवाजे में 61 किलो चांदी का परत चढ़ाया गया है। नवरात्र में रोपवे सुबह 7 बजे से रात्रि 10 बजे तक चलाया जाता है। इसी बीच समय को देखते हुए 1 घण्टे मेंटेन्स के लिए बन्द रखा जाएगा। उत्तम भोजन के लिए कैंटीन की व्यवस्था रोपवे मे भीड़ की दृष्टि से एयर कंडीशनर वेटिंग हॉल की व्यवस्था ट्रस्ट के ओर से की गई है।
ज्योति कलश स्थापना
मां बम्लेश्वरी ट्रस्ट समिति के कोषाध्यक्ष चन्द्रप्रकाश मिश्रा ने मीडिया को बताया कि, इस साल 7000 ज्योति कलश ऊपर पहाड़ों में विराजमान मां बमलेश्वरी के दरबार में और 900 ज्योति कलश नीचे मां के दरबार में 61 ज्योति कलश शीतला माता के दरबार में प्रज्वलित होगी। कोषाध्यक्ष ने इलायची दाना को लेकर कर कहा की माता जी का भोग समिति के कर्मचारी बनाते है। बाहर से जो दर्शनार्थी प्रसाद के रूप में नारियल इलायची दाना लाते है, उसमें से सिर्फ़ नारियल को ही चढ़ाया जाता है। इसके अतिरिक्त प्रसाद को दर्शनार्थियों को ही वापस या डिस्पोज कर दिया जाता है।