गर्भावस्था महिलाओं के लिए एक खूबसूरत अनुभव होता है. प्रेग्नेंसी फिजिकल, इमोशनल और साइकोलॉजिकल बदलाव लेकर आती है. लेकिन कुछ महिलाओं के लिए, प्रेग्नेंसी उदासी, चिंता और डिप्रेशन की भावनाएं भी लेकर आती है. इसे मेडिकल लैंगवेज में मूड डिसऑर्डर या प्री-पार्टम डिप्रेशन भी कहा जाता है, जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है. गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन से कौन सी महिलाएं अधिक प्रभावित होती हैं? इसकी जटिलताएं क्या हैं और क्या गर्भावस्था के दौरान गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी इसका असर पड़ता है? इन सब सवालों पर डॉ. अर्जुमंद फैयाज से खास बातचीत की…
मनोवैज्ञानिक डॉ. अर्जुमंद फैयाज ने बताया कि गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन, जिसे प्रीनेटल डिप्रेशन भी कहा जाता है, यह एक मूड डिसऑर्डर है जो गर्भवती महिलाओं को प्रभावित करता है. यह एक मेंटल हेल्थ कंडीशन है जिसमें उदासी, निराशा और रुचि की कमी की भावनाएं लगातार बनी रहती हैं. ये भावनाएं न केवल गर्भवती महिलाओं के दैनिक जीवन को प्रभावित कर सकती हैं, बल्कि मां के अजन्मे बच्चे की देखभाल को भी काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं.
प्रेग्नेंसी के बाद प्रीनेटल डिप्रेशन, जिसे अक्सर कम रिपोर्ट किया जाता है, एक गंभीर समस्या है. कई महिलाएं गर्भावस्था के दौरान खुश रहने का दबाव महसूस करती हैं, जिससे वे अपनी मेंटल हेल्थ प्रोब्लेम्स को छुपाती हैं, जिससे उन्हें आवश्यक सहायता प्राप्त करने में मुश्किल होती है. यह समझना कि गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन एक नॉर्मल और उपचार योग्य स्थिति है, इन बाधाओं को दूर करने और अधिक महिलाओं को सहायता लेने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद कर सकता है.
एक सवाल के जवाब में, डॉ. अर्जुमंद ने कहा कि यह मूड डिसऑर्डर गर्भावस्था के दौरान किसी भी महिला को हो सकता है, हालांकि, जिन गर्भवती महिलाओं के परिवार में डिप्रेशन का इतिहास रहा है, उनमें प्रसवपूर्व अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है. ऐसे में इस बीमारी में जेनेटिक फैक्टर अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में इन महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व डिप्रेशन डेवलप होने का खतरा अधिक होता है.
गर्भावस्था के दौरान डिप्रेशन के लक्षणों के बारे में बात करते हुए डॉ. अर्जुमंद ने कहा कि कुछ सामान्य संकेत हैं जिन पर गर्भावस्था के दौरान विचार करना बहुत जरूरी है, जिसमें शामिल है…
लगातार उदासी या लो मूड
.थकान या एनर्जी की कमी.
सोने में कठिनाई या बहुत अधिक सोना.
भूख या वजन में बदलाव.
अपराधबोध, बेकारपन या निराशा की भावना
ध्यान केंद्रित करने या निर्णय लेने में कठिनाई.
खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या के विचार आना