नई दिल्ली :- भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का महोत्सव विश्व प्रसिद्ध है। यह महोत्सव ओडिशा के पुरी शहर में हर साल बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पवित्र यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बल भद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। जगन्नाथ रथ यात्रा सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं रखती बल्कि इस यात्रा को एकता और भक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से जुड़ा एक सवाल आज भी कई लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है।
मजार पर रुकने के पीछे का रहस्य
कई लोग इस रहस्य से अनजान है कि आखिर यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के तीनों रथ एक खास जगह के सामने आकर क्यों हर बार रुक जाते हैं। बता दें, यह जगह कोई मंदिर या घर नहीं बल्कि एक मजार है। बता दें,जगन्नाथ रथ यात्रा की यह परंपरा है सदियों से चली आ रही है, जिसके पीछे बेहद रोचक पौराणिक कथा बताई जाती है।
किसकी है यह मजार
ओडिशा के पुरी में मुगलकाल की एक दंत कथा बेहद प्रचलित है। इस कथा के अनुसार पुरी जगन्नाथ मंदिर से चलकर करीब 200 मीटर की दूरी पर जगन्नाथ रथ यात्रा एक मजार के पास आकर रुक जाती है। बता दें, यह मजार भगवान जगन्नाथ के एक मुस्लिम भक्त, सालबेग की है। जहां पहुंचने के बाद तीनों रथ कुछ देर ठहरने के बाद फिर आगे बढ़ते हैं।
कौन हैं भगत सालबेग
हर साल लाखों की संख्या में जगन्नाथ के भक्त पुरी पहुंचकर इस दृश्य के साक्षी बनते हैं। बता दें,भारत में मुगल शासन काल के दौरान सालबेग नाम का एक वीर सिपाही हुआ करता था। जिसका पिता एक मुस्लिम और मां हिंदू थी। सालबेग को जितना विश्वास मुस्लिम धर्म पर था उतनी ही आस्था वो हिंदू धर्म पर भी रखता था। एक बार सालबेग को जंग के दौरान गहरी चोट लग गई, जिसकी वजह से उसे सेना को छड़ना पड़ा। जिसकी वजह से सालबेग बेहद निराश रहने लगा।
सालबेग कैसे बना जगन्नाथ का भक्त
उदास सालबेग को देखकर उसकी मां ने उसे भगवान जगन्नाथ से जुड़ी कई कथाएं सुनाई और सालबेग को भगवान की शरण में जाने की सलाह दी। सालबेग को भगवान की कथाएं सुनकर मन में प्रभु दर्शन की इच्छा होने लगी। जिसके बाद वो एक दिन पुरी स्थित जगन्नाथ धाम पहुंच गया।
धर्म बना भक्ति के आगे की अड़चन
जगन्नाथ धाम पहुंचते ही सालबेग जब मंदिर में प्रवेश करने लगा तो उसे गैर धर्म का होने की वजह से बाहर ही रोक दिया गया। इस बात ने सालबेग को बेहद निराश कर दिया। जिसके बाद सालबेग की मां ने उसे मंदिर के बाहर ही रहकर प्रभु का नाम लेने की सलाह दी। मां ने सालबेग को कहा कि अगर भक्ति सच्ची होती है तो भगवान जगन्नाथ खुद भक्त के पास आते हैं। सालबेग ने यह बात गांठ बांध ली और वो रथ यात्रा के मार्ग पर, जिस जगह आज उनकी मजार है, वहीं खड़े होकर भगवान के रथ का इंतजार करते थे। उनकी भक्ति इतनी गहरी और सच्ची थी कि जब भगवान जगन्नाथ का रथ उनके पास पहुंचता तो अपने आप ही रुक जाया करता था। ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं सालबेग को दर्शन देने के लिए अपना रथ रोकते थे।
मजार और रथ के बीच क्या है कनेक्शन
जब सालबेग की मत्यु हुई तो उसे उसी जगह दफना दिया गया, जहां खड़े होकर सालबेग भगवान के दर्शन किया करता था। आज भी उस जगह सालबेग की मजार मौजूद है और भगवान जगन्नाथ सालबेग को दर्शन देने के लिए अपना रथ उसके लिए वहां कुछ देर रोकते हैं।