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    Home » बौना हो रहा ये राज्य, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, इस कमी से 36% लोगों की कम रह गई हाइट
    मध्यप्रदेश

    बौना हो रहा ये राज्य, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, इस कमी से 36% लोगों की कम रह गई हाइट

    Amrendra DwivediBy Amrendra DwivediJune 3, 2025No Comments7 Mins Read
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    बौना हो रहा ये राज्य, रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, इस कमी से 36% लोगों की कम रह गई हाइट

    ग्वालियर:- अगर हम कहें कि समय के साथ आदमी की औसत उम्र की तरह ही लम्बाई भी घट रही है तो क्या आप यकीन करेंगे, शायद नहीं. लेकिन ये बात एक रिसर्च में सामने आई है. मध्य प्रदेश में लगभग 35 प्रतिशत युवाओं की लंबाई पर असर पड़ा है, वह भी एक महत्वपूर्ण पोषक तत्व की वजह से. जिंक वह महत्वपूर्ण पोषक तत्व है जो बच्चों में लंबाई बढ़ाने के लिए कारक होता है. लेकिन मध्य प्रदेश की लगभग 60 फीसदी मिट्टी में लगातार जिंक की मात्रा में गिरवाट देखी जा रही है. जिसका असर सीधे तौर पर बच्चों और युवाओं की लंबाई और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

    मिट्टी में जिंक की कमी का मानव शरीर पर असर

    इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल्स और एम्स की संयुक्त रिसर्च में इस बात का पता चला है कि, मिट्टी में जिंक की कमी भोजन में जिंक की मात्रा पर असर करती है और जब इंसान कम जिंक पोषकता का भोजन करता है तो शरीर में मौजूद एंजाइम्स का डेवलपमेंट प्रभावित होता है. इस रिसर्च में शामिल रहे कृषि वैज्ञानिक और वर्तमान में ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला ने बातचीत में इस रिसर्च को लेकर चर्चा की और इसके बारे में विस्तार से बताया.

    तीन जिलों का चयन कर हुई थी रिसर्च

    प्रो. अरविंद कुमार शुक्ला के मुताबिक, ”जब वे इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल्स भोपाल में कार्यरत थे उस दौरान इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स) के साथ मिलकर ‘मिट्टी में जिंक और अन्य पोषक तत्वों की कमी का मानव स्वास्थ्य पर असर’ पर एक रिसर्च की गई थी. यह एक महत्वपूर्ण और बड़ा अध्ययन था जिसमें एम्स के डॉक्टर्स, सॉइल साइंटिस्ट्स और माइक्रोबायोलॉजिस्ट भी शामिल थे. इस रिसर्च के दौरान मध्य प्रदेश के मंडला, बैतूल और झाबुआ तीन जिले सेलेक्ट किए. इन जिलों में अलग अलग गांव का चयन किया गया, गांव में भी कुछ घर चुने गए और ट्राइबल्स पर गहन अध्ययन किया गया. इस अध्ययन में उन लोगों की कृषि भूमि की मिट्टी का परीक्षण किया गया. जो चारा उनके मवेशियों को खिलाया जाता था उसका परीक्षण किया गया. उनकी भोजन सामग्री और मसालों तक का परीक्षण इस रिसर्च में किया गया था, जो की सैंपलिंग की प्रक्रिया थी.’

    तय मानक से 40 फीसदी कम मिला जिंक इंटेक

    इसके पीछे की बड़ी वजह थी की इस सैंपल में लोगों द्वारा जो भोजन किया जाता था. उसमें पता लगाया गया कि उनके भोजन में कितना जिंक सप्लाई हो रहा है. साथ ही मेडिकल साइंस एक्सपर्ट्स ने इसमें यह पता लगाया कि, इन लोगों के शरीर में जिंक का कितना इंटेक हो रहा है. जिससे पता लगाया जा सके की स्टैंडर्ड इंटेक से शरीर में जिंक की मात्रा कितनी कम है. परीक्षण में इन लोगों के शरीर में जिंक इंटेक 35-40% कम पाया गया. क्योंकि मानव शरीर में रक्त में जिंक का मानक 10 मिली ग्राम प्रति किलो और बच्चों में इसकी मात्रा 13 मिलीग्राम प्रतिकिलो के हिसाब से होना चाहिए था.

    इंसान में हाइट के लिए जिंक महत्वपूर्ण पोषक तत्व

    प्रो अरविंद शुक्ला ने बताया कि, ”जब जिंक की शरीर में मात्रा कम पायी गई तो इसके लिए एक रिलेशनशिप बनायी गई, जिससे पता लगाया जा सके कि क्या वहां की मिट्टी में भी जिंक की मात्रा कम है. स्टैटिक्स के जरिए इस संबंध का पता चला. पूर्व में ही मेडिकल साइंस प्रूफ कर चुका है कि, जिनेटिक कारणों को छोड़कर यदि किसी बच्चे की लंबाई में कमी आती है तो इसके पीछे उसके भोजन में पोषक तत्वों की कमी होती है.” जिंक पर पूर्व में हुए रिसर्च में भी यह बात डॉ एएस प्रसाद ने पाया था कि, जिंक की कमी बच्चों में लंबाई और वजन वृद्धि में रुकावट बनती है. इस रिसर्च में शामिल रहे एम्स के डॉ अभिजीत पाखरे, डॉ अश्विन कुठनीश समेत तमाम डॉक्टर्स थे जो मिलकर काम कर रहे थे.

    36 प्रतिशत लोगों की लंबाई औसत से कम

    इस संयुक्त रिसर्च में मुख्यरूप से मिट्टी में जिंक की मात्रा कितनी है, और मिट्टी से फसल में कितनी जा रही और उस फसल का सेवन कर रहे मवेशी या फसल द्वारा निर्मित भोजन से मनुष्य में कितनी मात्रा जिंक की जा रही है, इसका साइकिलिक अध्यन किया तो पाया गया कि सैंपल के लिए चुने गए 36 प्रतिशत लोग ऐसे थे जिनकी हाइट जिंक की वजह से औसत लंबाई (पुरुषों में 5 फुट 4 इंच और महिलाओं में 5.0 फुट) से कम थी. ये एक सीमित क्षेत्रफल में किया गया रिसर्च था. लेकिन चौकाने वाली बात यह है कि, जब प्रदेश के सभी जिलों में मिट्टी का परीक्षण कराया गया तो पता चला की मध्य प्रदेश की 60 प्रतिशत मिट्टी में जिंक की कमी है. यह कमी किसी ना किसी प्रकार से फसल को प्रभावित करती है. खासकर दलहन या तिलहन और सब्जी की फसल को ज्यादा प्रभावित करती है.

    प्रदेश में 60 फीसदी से ज्यादा मृदाओं में जिंक की कमी

    मध्य प्रदेश सरकार ने इस रिसर्च के आधार पर प्रदेश के सभी जिलों में मिट्टी का परीक्षा कराया और रिसर्च टीम ने बाकायदा इसका एक एटलस भी बनाया था. जिसमें जिलेवार और तहसीलवार, कहां की मिट्टी में कितनी जिंक डेफिशिएंसी (कमी) है इसका रिकॉर्ड पब्लिश किया था. इस कमी को 6 भागों में वर्गित किया गया है. अत्यंत कमी, कमी, लिटेंट डेफिशियेंसी (लिटेंट कमी). इसके बाद एडिक्यूट लेवल देखा गया जिसमें प्रदेश की लगभग 7-8 प्रतिशत मृदाएं ही ऐसी पायी गई जिनमें जिंक का प्रतिशत बहुत अच्छा था. जबकि 60-70 फीसदी मृदाओं में जिंक बहुत कम है.

    कितनी होनी चाहिए मिट्टी में जिंक की मानक मात्रा

    बता दें कि, मिट्टी में जिंक की आइडियल मात्रा 0.75 पीपीएम (पोर्शन पर मिलियन) से ज्यादा और 2 पीपीएम तक मानी जाती है. इससे कम होने पर इसे जिंक की कमी और 10 पीपीएम से ज्यादा होने पर मिट्टी में टॉक्सिटी बढ़ना माना जाता है.

    मध्य प्रदेश में कितने प्रकार की मिट्टी

    मध्य प्रदेश देश में सर्वाधिक फसल पैदावार करने वाला प्रदेश है. ऐसे में यहां कितने प्रकार की मिट्टी है यह बात भी जानने की उत्सुकता होती है. तो आपको बता दें कि, मध्य प्रदेश में चार प्रकार की मिट्टी पायी जाती है. पीली और सबसे ज्यादा है काली मिट्टी, दूसरी एलोवियल सॉइल है जो ग्वालियर चंबल अंचल में पायी जाती है, तीसरी लाल मिट्टी पायी जाती है. चौथी है मिक्स मिट्टी जो कुछ हद तक काली कुछ एलोवियल है. यह एक तरह की मिली जुली मिट्टी होती है. रिसर्च में यह भी पता चला कि, एलोवियल सॉइल्स में जिंक की डेफिशियेंसी यानी कमी सबसे ज़्यादा पायी गई. लेकिन काली मिट्टी में भी जिंक की कमी कम होना चाहिए थी लेकिन अब उसमे भी कमी बढ़ रही है. जिसकी बड़ी वजह फसलों की उत्पादकता का बढ़ना है. ज्यादा उत्पादन की वजह से मिट्टी में पोषक तत्वों की मुख्य रूप से जिंक की कमी हो रही है.

    मिट्टी में जिंक की पूर्ति से कम हो सकती है गोलियों पर निर्भरता

    कुलगुरु अरविंद शुक्ला का कहना है कि, ”इस स्थिति में यदि मिट्टी में जिंक की मात्रा की पूर्ति किसी तरह कर दी जाये तो फसलों में भी जिंक की सप्लाई ज्यादा होगी और फसल से भोजन में भी उस कमी को पूरा किया जा सकता है. क्योंकि इस तरह आज लोगों को जिंक की गोलियां अलग से खानी पड़ रही हैं. उसमें कमी लाने का प्रयास किया जा सकता है. हालांकि इस पर अभी बहुत सारे अध्ययन करने बाकी हैं.

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