रतलाम:- शादी के योग्य हो चुके युवक और युवतियों की शादी नहीं हो रही हो तो घर परिवार के लोग कई तरह के जतन करते हैं. इसमें विभिन्न अनुष्ठान करवाने से लेकर देवी-देवताओं के मंदिर में दर्शन करना शामिल है. कई देवी देवताओं के मंदिरों के बारे में मान्यता है कि वहां दर्शन करने से विवाह में आ रही है अड़चन समाप्त हो जाती हैं. मध्य प्रदेश के नीमच जिले के जावद में एक देवता ऐसे हैं जो केवल कुंवारों की ही सुनते हैं.
जी हां, जावद बिल्लम बावजी को कुंवारों का देवता कहा जाता है. जिनका दरबार साल में 9 दिनों के लिए सड़क पर लगता है. इस दौरान कुंवारे युवक-युवतियां और विवाहित जोड़े यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. दरअसल बिल्लम बावजी जावद के धान मंडी क्षेत्र में विराजित हैं. करीब 50 वर्षों से यह अनोखी परंपरा चली आ रही है. जहां रंग पंचमी के मौके पर बिल्लम बावजी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है, जो रंग तेरस तक यहां रहती है.
इस दौरान उनके दर्शन करने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती है. मान्यता है कि बिल्लम बावजी के दर्शन करने से कुंवारों की शादी हो जाती है. इसलिए हर साल कुंवारों के परिजन उन्हें बावजी के दर्शन कराने यहां लेकर आते हैं.
मन्नत मांगते ही चल जाती है शादी की बात
बेटे की शादी की मन्नत पूरी होने पर बिल्लम बावजी को मानने वाले घनश्याम धाकड़ ने बताया “1 साल पहले कुंवारों के देवता के बारे में सुना था. इसके बाद वहां अपने बेटे की शादी की मन्नत मांगने यहां आए. इसी दौरान उसकी शादी का अच्छा रिश्ता आया और अब उसकी शादी हो चुकी है.” एक अन्य श्रद्धालु ने बताया कि मनोकामना मांगने के महज एक महीने के अंदर ही उनके घर में शहनाई बज गई थी. स्थानीय व्यापारी राजेश सोलीवाल ने बताया कि 1998 में उनकी शादी भी बावजी की कृपा से हुई थी. जिसके बाद अब मेरे पुत्र का भी संबंध बावजी के आशीर्वाद से तय हो गया है.
केवल 9 दिन लगता है दरबार
कुंवारे युवक-युवतियों के लिए यह खास दरबार रंगपंचमी के मौके पर लगता है. पुजारी हेमेंद्र चतुर्वेदी बताते हैं “पंचमी से लेकर रंग तेरस तक बिल्लम बावजी को गणेश मंदिर की कुई से लाकर यहां विराजित किया जाता है. इस दौरान पूजा-अर्चना और अपनी अर्जी लगाने के लिए हजारों युवक युवतियां और नव विवाहित जोड़े यहां पहुंचते हैं. यह परंपरा ज्यादा पुरानी नहीं है करीब 50 वर्ष पुरानी है.
उन्होंने आगे कहा “अन्य देवी देवताओं के स्थान की तरह ही यहां पर भी लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर दर्शन करने आते थे. लेकिन धीरे-धीरे बिल्लम बावजी की ख्याति कुंवारों के देवता के रूप में होने लगी. इन्हें भैरवजी महाराज का ही स्वरूप माना जाता है. खास बात यह है कि बिल्लम बावजी का अपना कोई मंदिर नहीं है. वह इन 9 दिनों के अलावा पास ही स्थित गणेश मंदिर की कुई के थारे पर विराजित होते हैं. सामान्य दिनों में दर्शन करने आने वाले लोग वहां पहुंचकर बिल्लम बावजी के दर्शन लाभ लेते है.”
केवल पान और नारियल से प्रसन्न होते हैं देवता
यहां मन्नत के रूप में बिल्लम बावजी देवता को एक पान और नारियल भेंट कर मनोकामना मांगी जाती है. जिस युवक या युवती की शादी की अर्जी लगाई जाती है, उसे चढ़ाया हुआ पान खाना होता है. इसके बाद उसके यहां शहनाई बज ही जाती है. ऐसे हजारों उदाहरण है जिनकी शादी सालों से नहीं हो रही थी, लेकिन अर्जी लगाने के चंद दिनों में ही शादी हो गई.
कुई से निकली थी बिल्लम बावजी की प्रतिमा
पुजारी हेमेंद्र चतुर्वेदी बताते हैं “करीब 50 वर्षों पूर्व गणेश मंदिर की कुई की साफ-सफाई के दौरान यह प्रतिमा निकली थी. जिसे कहीं स्थापित नहीं किया गया बल्कि कुई के थारे (किनारे) पर ही विराजित कर दिया गया. लेकिन रंग पंचमी से लेकर रंग तेरस के दिन तक सड़क पर स्थित बिजली के पोल के पास इनकी स्थापना की जाती है. जहां नौ दिनों तक पूजा-अर्चना, अर्जी और मन्नतों का दौर चलता है.
यहां हो जाता है लिंग अनुपात का सर्वे
इस मंदिर के बारे में एक रोचक जानकारी देते हुए स्थानीय पत्रकार ने बताया कि यहां क्षेत्र के लिंग अनुपात का भी सर्वे हो जाता है. वैसे तो बिल्लम बावजी कृपा करने में लड़का-लड़की का भेदभाव नहीं करते. लेकिन यहां आने वाले फरियादियों में ज्यादा संख्या अविवाहित युवकों की ही होती है. जिससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे समाज में बालिकाओं की संख्या तेजी से कम हुई है. यही वजह भी है कि विवाह योग्य हो चुके युवकों को शादी के लिए लड़कियां नहीं मिल रही हैं.
बहरहाल कुंवारों के देवता का यह दिव्य दरबार अब मार्च 2026 में लगेगा. जहां जीवनसाथी की तलाश में जुटे अविवाहित युवक युवतियां पहुंच कर अपनी अर्जी बिल्लम बावजी के समक्ष लगा सकते हैं.