नई दिल्ली:- अमेरिकी हमले के बाद ईरान की संसद ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने को मंजूरी दे दी है. हालांकि, अंतिम निर्णय सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा लिया जाएगा. ईरान के होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने के करीब पहुंचने के साथ प्रमुख ऊर्जा आयातक देशों, विशेष रूप से भारत में खतरे की घंटी बज रही है. तेहरान में 22 जून को हुए संसदीय मतदान के बाद यह फैसला क्षेत्रीय तनाव में तेज वृद्धि का संकेत देता है. तेल और गैस के प्रवाह में गंभीर व्यवधान का खतरा मंडरा रहा है. भू-राजनीतिक संकट के गहराने के साथ भारत को बढ़ती ऊर्जा असुरक्षा, वैश्विक व्यापार व्यवधान और मध्य पूर्व में व्यापक सैन्य टकराव की आशंका का सामना करना पड़ रहा है.
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव द्वारा तैयार किए गए एक शोध नोट के अनुसार, होर्मुज जलडमरूमध्य, जो वैश्विक तेल शिपमेंट और महत्वपूर्ण एलएनजी वॉल्यूम का लगभग 25% वहन करता है, अभी खुला है. चूंकि संसदीय वोट बाध्यकारी नहीं है, इसलिए अंतिम निर्णय ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद द्वारा लिया जाएगा, जो अभी भी विचार-विमर्श कर रही है. हालांकि अभी तक कोई नाकाबंदी नहीं की गई है, लेकिन अमेरिका और ईरान में बढ़ते तनाव के बीच व्यवधान का खतरा मंडरा रहा है.
इस रिपोर्ट के अनुसार भारत होर्मुज जलडमरूमध्य के संभावित बंद होने से विशेष रूप से असुरक्षित है, क्योंकि भारत के कच्चे तेल का लगभग दो-तिहाई और एलएनजी आयात का आधा हिस्सा इसी मार्ग से होकर गुजरता है. किसी भी नाकाबंदी से तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, भारत का आयात बिल तेजी से बढ़ सकता है, महंगाई बढ़ सकती है और देश की राजकोषीय स्थिति पर दबाव पड़ सकता है. शिपिंग बीमा प्रीमियम और माल ढुलाई लागत में भी वृद्धि होने की उम्मीद है, जिससे न केवल भारत के ऊर्जा बाजार बल्कि एशिया और यूरोप के बीच व्यापक व्यापार भी प्रभावित होगा.
यूरोप में गैस की कीमतें बढ़ेंगी
अजय श्रीवास्तव ने इस रिपोर्ट में आगे बताया कि संभावित वैश्विक प्रभाव तेल से कहीं आगे तक फैला हुआ है. अनुमान है कि खाड़ी के माध्यम से सालाना 1.2 ट्रिलियन डॉलर का समुद्री व्यापार होता है. कतर के एलएनजी निर्यात में व्यवधान से यूरोपीय गैस की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी, जबकि ऊर्जा, रसायन, उर्वरक, धातु और खाद्य उत्पादों के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भर भारतीय उद्योगों को गंभीर कमी और बढ़ती लागत का सामना करना पड़ सकता है.
साथ ही, लाल सागर के नजदीकी इलाके में स्थिति बिगड़ती जा रही है. 14-15 जून को यमन के हूती बलों पर इजराइल के हवाई हमलों के बाद तनाव बढ़ गया है, जिससे भारत के पश्चिम की ओर निर्यात पर नया जोखिम आ गया है. यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और अमेरिका के पूर्वी तट को भारत के लगभग 30 प्रतिशत निर्यात बाब अल-मंदब जलडमरूमध्य से होकर गुजरते हैं, जो अब तेजी से कमजोर होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि अगर सुरक्षा स्थितियों के कारण शिपिंग को केप ऑफ गुड होप के जरिये फिर से रूट करना पड़ता है, तो डिलीवरी का समय दो हफ्ते तक बढ़ सकता है, जिससे इंजीनियरिंग सामान, कपड़ा, रसायन और महत्वपूर्ण आयात के भारतीय निर्यातकों की लागत में बड़ी वृद्धि हो सकती है.
सैन्य संघर्ष बढ़ने का खतरा
रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की स्थिति में सैन्य संघर्ष बढ़ने का खतरा गंभीर बना हुआ है. बहरीन में स्थित अमेरिकी नौसेना का पांचवां बेड़ा जलडमरूमध्य के माध्यम से नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है. यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस भी अपने स्वयं के तेल और गैस हितों की रक्षा के लिए नौसेना के युद्धपोत तैनात कर सकते हैं. शोध नोट में सुझाव दिया गया है कि खाड़ी से दो सबसे बड़े ऊर्जा आयातक चीन और भारत बढ़ते आपूर्ति जोखिमों का सामना कर रहे हैं और राजनयिक चैनलों के माध्यम से तनाव कम करने की कोशिश कर सकते हैं.
अजय श्रीवास्तव ने यह भी उल्लेख किया कि रूस, ऊर्जा की उच्च कीमतों की उम्मीद करते हुए, ईरान के कदम का मौन समर्थन कर सकता है, हालांकि इससे खाड़ी देशों के साथ रूस के संबंधों में तनाव पैदा होने का जोखिम है. जलडमरूमध्य के लंबे समय तक बंद रहने से खाड़ी क्षेत्र में व्यापक सैन्य संघर्ष शुरू होने का जोखिम है, जिसका सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए गंभीर भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव होगा – विशेष रूप से भारत जैसे ऊर्जा-निर्भर देशों के लिए.
वैश्विक स्तर पर तनाव का जोखिम
इस नोट के अनुसार, हालांकि बीजिंग और मॉस्को ने अब तक वाशिंगटन के साथ सीधे सैन्य टकराव से परहेज किया है, लेकिन ईरान के लिए उनके राजनयिक समर्थन ने वैश्विक चिंता को बढ़ा दिया है. अमेरिका और इजराइल के ईरान का सैन्य रूप से सामना करने और चीन और रूस द्वारा तेहरान का समर्थन करने के साथ, वर्तमान स्थिति दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के स्तर के टकराव के करीब लाती है, जो दशकों में कभी नहीं हुआ. एक ऐसे क्षेत्र में जो वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और व्यापार प्रवाह के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है, संघर्ष का जोखिम शायद ही कभी अधिक रहा हो.
मौजूदा स्थिति पर पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा, “जहां तक आज वैश्विक स्थिति का सवाल है, मध्य पूर्व में तनाव का बढ़ना पूरी तरह अप्रत्याशित नहीं था. हमें इसका पूर्वानुमान था. प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार लगातार स्थिति की समीक्षा कर रही है, जिसमें होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने की संभावना भी शामिल है.
भारत ने आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई…
उन्होंने कहा, हमने आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है. भारत में प्रतिदिन खपत होने वाले 55 लाख बैरल कच्चे तेल में से करीब 15-20 लाख बैरल होर्मुज जलडमरूमध्य से आता है. हम अन्य मार्गों से करीब 40 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करते हैं. हमारी तेल विपणन कंपनियों के पास पर्याप्त स्टॉक है. उनमें से ज्यादातर के पास तीन सप्ताह तक का स्टॉक है और एक कंपनी के पास 25 दिनों का स्टॉक है. हम अन्य मार्गों से कच्चे तेल की आपूर्ति बढ़ा सकते हैं. हम सभी संभावित भागीदारों के संपर्क में हैं. इस संबंध में किसी भी तरह की चिंता का कोई कारण नहीं है. हम सामने आने वाले हालात पर नजर रखेंगे और प्रधानमंत्री पहले ही सभी प्रमुख नेताओं से बात कर चुके हैं. उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति से तनाव कम करने के लिए लंबी बातचीत की है. हमें उम्मीद है और हम सभी उम्मीद करते हैं कि स्थिति शांत होगी और तनाव कम होगा, न कि और बढ़ेगा. इस बीच, हम बदलती स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं.