बलांगीर:- ओडिशा के बलांगीर जिले की नारायणपुर पंचायत के सेलमापाली गांव में ‘बुढ़ापा’ कभी आता ही नहीं. दरअसल, यह उपलब्धि नहीं त्रासदी है. इस गांव में एक भी व्यक्ति 60 साल से ज़्यादा उम्र का नहीं है. स्थानीय लोग कहते हैं, यह गांव एक घातक स्वास्थ्य संकट की चपेट में है. क्योंकि पिछले 10 सालों में यहां 100 से ज़्यादा लोगों की कम उम्र में ही मौत हो चुकी है. ज्यादातर मामलों में किडनी फेल होना मुख्य कारण बताया गया है.
इस गांव के लोग दहशत में जी रहे हैं. पिछले दो महीनों में पांच मौतों की जानकारी मिलने पर ईटीवी भारत के एसके मोहम्मद वाहिद गांव पहुंचे. स्थानीय लोगों ने अपने डर और गांव में हो रही मौतों के रहस्यमय पैटर्न के बारे में बताया. लगभग 300 लोगों की आबादी वाले सेल्मापाली गांव के लगभग हर परिवार में कम से कम एक किडनी रोगी हैं. पिछले एक दशक में इस गांव में लगभग 100 लोगों की मौत गंभीर बीमारी के कारण हो गयी.
क्या है ग्रामीणों का दर्दः
अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले शंकर कभी बिल्कुल स्वस्थ और निरोग थे. अब गुर्दे की बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं. शुरुआती दिनों में उन्हें बार-बार बेहोशी आती थी. भीमा भोई मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज किया गया. पिछले तीन सालों से वे बिस्तर पर ही हैं और बड़ी मुश्किल से चल पाते हैं.
50 साल की उम्र की सुवर्णा भुआ ने गांव के दूरस्थ स्थान और दुर्गम स्वास्थ्य सेवा के कारण अपनी बढ़ती पीठ दर्द को नजरअंदाज कर दिया. जब तक वह जिला अस्पताल पहुंचीं, तब तक उनके गुर्दे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके थे. जांच करने पर, डॉक्टरों ने पाया कि उनके गुर्दे क्षतिग्रस्त हो गए हैं. उन्हें दवाइयां दी गईं, लेकिन वे मुश्किल से चल पा रही हैं.
लक्ष्मण हाथी (42), मोहन नंदा (55), पंचानन पोध (54), सुवर्णा भुये (55) और ऐनला महाकुड (45) की हालत भी कुछ अलग नहीं है. इन सभी ने किडनी की बीमारी की पुष्टि करने वाले अस्पताल के पर्चे दिखाए. जिनमें से ज़्यादातर भीमा भोई और बुर्ला अस्पतालों के थे. ज़्यादातर के लिए तो बुनियादी इलाज भी अफोर्डेबल नहीं है.
परिवारों को अब इलाज और जीवन के बीच चुनाव करना पड़ रहा है. कमाने वाले सदस्यों के बिस्तर पर पड़े होने के कारण, उनके पास बहुत कम उम्मीद है. सरकारी दवाइयां कुछ राहत देती हैं, लेकिन लागत और दूरी के कारण अस्पताल जाना लगभग असंभव है. कुछ ग्रामीण तपेदिक, मानसिक रोगों और हृदय संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित हैं.
भक्ति बर्गे (34), दुपति हाथी (45) और बिरंची माझी (44) की हाल ही में मौत हो गई. उनके परिवारों ने बताया कि वे स्वस्थ थे, लेकिन एक दिन अचानक उनके पैर और कमर अकड़ गए. जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया और उनकी किडनी की बीमारी का पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों हो रहा है.
पुरंदर माझी ने कहा, “हर घर में कम से कम एक किडनी का मरीज है. यहां कोई भी 60 साल से ज़्यादा नहीं जीता. पिछले 8-10 सालों से यही स्थिति है, हमें कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या हो रहा है.
शुघाग महाकुड़ की सास सालों के इलाज के बावजूद बिस्तर पर हैं. सरकारी हस्तक्षेप का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. “मेरी सास पिछले दो सालों से बिस्तर पर हैं. पहले उनके हाथ, पैर और फिर कमर में सूजन आ गई. हम उन्हें बलांगीर के एक अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने हमें बुर्ला रेफर कर दिया. वहां उन्हें किडनी की बीमारी का पता चला. तब से, इलाज के बावजूद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है.”
ललिता बर्गे की बहू भक्ति बर्गे को किडनी की बीमारी के कारण खो दिया था. उन्होंने कहा, “मेरी बहू एक छोटी बच्ची की मां थी. तीन महीने पहले, उसके हाथ, पैर और कमर में अचानक सूजन आ गई. हमने उसे बलांगीर के भीमा भोई अस्पताल में भर्ती कराया, और वहां से उसे बुर्ला रेफर कर दिया गया. डॉक्टरों ने पुष्टि की कि उसे किडनी की बीमारी थी. इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई.
क्या कहते हैं डॉक्टरः
ईटीवी भारत द्वारा मामले के बारे में पूछताछ करने पर, बलांगीर के मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी (सीडीएमओ) डॉ. रमेश चंद्र साहू ने तत्काल कार्रवाई का आश्वासन दिया. उन्होंने बताया कि एक विशेष चिकित्सा दल गांव भेजा गया है और रक्त के नमूने एकत्र किए गए हैं. रिपोर्ट के आधार पर गंभीर रूप से बीमार चार मरीजों को भीमा भोई मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है.
डॉ. साहू ने आश्वासन दिया कि अब कारण का पता लगाने के लिए पूर्ण रक्त परीक्षण और पानी की गुणवत्ता की जांच की जाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि जिले के सिंधकेला और बंगीमुंडा इलाकों में पहले भी किडनी की इसी तरह की समस्याएं सामने आई थीं.
किडनी की बीमारी के क्या हैं लक्ष्णः
पूर्व स्वास्थ्य निदेशक सुज्ञान मिश्रा ने बताया कि किडनी की बीमारी अक्सर चुपचाप बढ़ती रहती है. “किडनी की बीमारी का आसानी से पता नहीं चलता. जब तक लक्षण दिखाई देते हैं, तब तक किडनी अक्सर क्षतिग्रस्त हो चुकी होती है. इसके लक्षणों में आराम की कमी, चक्कर आना, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव, सोडियम और पोटेशियम का स्तर कम होना, मेटाबॉलिज्म कम होना, हाथों-पैरों में सूजन और पीठ दर्द शामिल हैं.”
सामान्य कारणों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, “गुर्दे की बीमारी या क्षति के पीछे प्रमुख कारणों में अनियंत्रित मधुमेह और उच्च रक्तचाप, हानिकारक धातुओं से युक्त दूषित पानी का सेवन, इबुप्रोफेन जैसी ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक दवाओं का नियमित उपयोग, डॉक्टर की देखरेख के बिना दवाएं लेना आदि शामिल हैं.” उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि स्वच्छ पेयजल का सेवन करना तथा स्व-चिकित्सा से बचना गुर्दे की बीमारियों की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण है.
पानी दूषित होने की आशंकाः
रिपोर्टों के अनुसार, ग्रामीण पीने के पानी के लिए पूरी तरह से ट्यूबवेल पर निर्भर हैं. आशंका जताई जा रही है कि पानी दूषित हो सकता है. ग्रामीण पेयजल आपूर्ति प्राधिकरण द्वारा आखिरी बार पानी की जांच लगभग एक दशक पहले की गई थी. हालांकि उसकी रिपोर्ट कभी साझा नहीं की गई. आस-पास कोई अस्पताल न होने के कारण, ग्रामीण अक्सर पहले बिना लाइसेंस वाले झोलाछाप डॉक्टरों या स्थानीय ओझाओं के पास जाते हैं.