डेस्क न्यूज : हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। हर महीने दो एकादशी व्रत पड़ते हैं, और साल भर में कुल 24 एकादशी व्रत होते हैं। फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को आमलकी एकादशी या आमला एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ आंवले के पेड़ की पूजा का भी विशेष महत्व है।
आमलकी एकादशी का महत्व-
आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास बना रहता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
आंवले के पेड़ की पूजा की परंपरा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी को यह जानने की इच्छा हुई कि वे कैसे उत्पन्न हुए। इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू की। भगवान विष्णु उनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए। भगवान विष्णु को देखकर ब्रह्मा जी भावुक हो गए और उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ब्रह्मा जी के आंसू भगवान विष्णु के चरणों में गिरे और उनसे ही आंवले का पेड़ उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से कहा कि वे आंवले के पेड़ में निवास करेंगे। जो भी आंवले के पेड़ की पूजा करेगा, उसे शुभ फल प्राप्त होंगे और उसकी सभी इच्छाएं पूरी होंगी। यह घटना फाल्गुन माह की एकादशी के दिन हुई थी, इसलिए तब से ही इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की परंपरा शुरू हो गई।
आमलकी एकादशी 2025 की तिथि और समय-
हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 9 मार्च 2025 को सुबह 7 बजकर 45 मिनट पर शुरू होगी और 10 मार्च को सुबह 7 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि के अनुसार, आमलकी एकादशी का व्रत 10 मार्च को रखा जाएगा। व्रत का पारण 11 मार्च को सुबह 6 बजकर 35 मिनट से 8 बजकर 13 मिनट तक किया जाएगा।
पूजा का फल-
आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा और परिक्रमा करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और मरने के बाद वैकुंठ धाम में स्थान मिलता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण का संदेश भी देती है।