नई दिल्ली :- शरीर का मुख्य आंतरिक अंग यकृत है, जिसे मेडिकल भाषा में लिवर कहा जाता है. इसका शरीर को ऊर्जावान बनाए रखने में अहम योगदान है. लिवर ही इंसान का खाया पिया पचाता है. लिवर में विशेष एंजाइम होते हैं, जिनमें भोजन पचाने के पंचक पित्त विशेष हैं. यह पंचक पित्त एंजाइम है, जो भोजन को पचाते हैं. यदि लिवर में कोई परेशानी होती है तो शरीर अस्वस्थ हो जाता है. वर्तमान जीवन शैली में लिवर संबंधित समस्याएं काफी बढ़ गई हैं. इनमें फैटी लिवर भी एक है. फैटी लिवर किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकता है. जानते हैं आयुर्वेद पद्धति के अनुसार फैटी लिवर के कारण, लक्षण, उपचार और लिवर को स्वस्थ बनाने के नुस्खे.
राजस्थान में आयुर्वेद चिकित्सा विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. बी.एल मिश्रा की मानें तो 60 से 70 प्रतिशत लोग फैटी लिवर का शिकार हैं. अनियमित खानपान और जीवन शैली कई तरह के रोग को जन्म दे रही है. इसमें लिवर संबंधी रोग शामिल हैं. लिवर अपने खास एंजाइम पंचक पित्त के माध्यम से भोजन पचाता है. भोजन को पचाने के बाद मिले रस से ही शरीर को ऊर्जा मिलती है. ऐसे में लिवर का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है, लेकिन देखने में आया है कि लोगों की जीवन शैली में गत दो दशक से काफी बदलाव आ गया. लोग स्वाद के चक्कर में पौष्टिकता को नजरअंदाज कर रहे हैं. अपने जीवन को आरामदायक बनाने के चक्कर में नुकसान कर रहे हैं. अधिकांश ऐसे लोग फैटी लिवर के शिकार हो रहे हैं.
शराब व अनियमित भोजन शैली से होता है रोग:
डॉ.मिश्रा बताते हैं कि फैटी लिवर दो प्रकार के होते हैं. एक शराब के अधिक सेवन व दूसरा अनियमित भोजन शैली. यह समस्या युवाओं में भी देखने को मिल रही है.अत्यधिक शराब और मसालेदार भोजन का सेवन करने से फैटी लिवर से ग्रसित लोगों को स्वस्थ होने में काफी समय लगता है. उसके लिए चिकित्सक के बताए परहेज के साथ लंबे समय तक उपचार लेना होता है. वहीं अनियमित भोजन शैली को अपनाने वाले लोगों में फैटी लिवर की समस्या बढ़ रही है. हालांकि यह उतना खतरनाक नहीं है, लेकिन ध्यान नहीं दिया तो खतरनाक हो सकता है. अन्य रोग को भी जन्म दे सकता है.
कार्यक्षमता को करता है कमजोर:
आयुर्वेद विभाग में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. मिश्रा बताते हैं कि शरीर के आंतरिक ग्रंथियां में यकृत यानी लिवर सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण प्रथम ग्रंथि है. इसका कार्य केवल भोजन पचाना ही नहीं बल्कि पोषक तत्वों को शरीर तक पहुंचाना भी है. यकृत खाए भोजन को पंचक पित्त के माध्यम से पचाता है. इसके बाद बचे भोजन से शरीर को ऊर्जा ही नहीं मिलती, बल्कि रस, रक्त, मांस, मेद (चर्बी), अस्थि, मजा और शुक्र का निर्माण करने में अहम है. डॉ. मिश्रा ने बताया कि जब असामान्य भोजन से यकृत में मौजूद पंचक पित्त और कफ विकृत मिलकर यकृत को वसायुक्त बना देते हैं, जिससे यकृत का आकार बढ़ जाता है. इसे ही फैटी लिवर कहते हैं. फैटी लिवर के कारण उसकी कार्य क्षमता कमजोर हो जाती है. विशेष कर शराब पीने वाले और तीक्ष्ण और तीव्र मसालेदार भोजन करने वाले लोगों के लिए फैटी लिवर जानलेवा हो सकता है. शराब नहीं पीने वाले लोगों के लिए भी फैटी लिवर अच्छा नहीं है. पाचन तंत्र कमजोर होने से शरीर पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगते हैं. इस कारण शरीर में अन्य कई रोग उत्पन्न होने लगते हैं.
ऐसे पहचानें रोग:
डॉ. मिश्रा ने बताया कि अधिक शराब पीने वालों को फैटी लिवर होने पर शरीर लगातार कमजोर होने लगता है. अनियमित भोजन शैली वालों का पेट और शरीर मोटा होने लगता. इस कारण वजन बढ़ता है. दैनिक कार्य प्रभावित होने लगते हैं. फैटी लिवर अधिक समय तक रहने पर लिवर सोरायसिस भी हो जाता है. इसमें लिवर धीरे धीरे सड़ने लगता है, जो बहुत ज्यादा घातक है. फैटी लीवर की अधिक समय तक रहने से हृदयघात और ब्रेन हेमरेज का खतरा है.
स्वाद के चक्कर में पौष्टिकता को ना करें नजरअंदाज:
आयुर्वेद विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक मिश्रा बताते हैं कि फैटी लिवर से बचने के लिए जीवन शैली सुधारें.एक बार फैटी लिवर होने के बाद उपचार से सामान्य लीवर होने में रोगी को लंबा वक्त लग जाता है. रोगी आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानी होती है. प्रत्येक व्यक्ति को व्यायाम और योग एवं किसी भी खेल को दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनना चाहिए. खानपान की बिगड़ी शैली में बदलाव कर सुधार करना चाहिए. स्वाद के चक्कर में ना आएं. पौष्टिकता नजरअंदाज करना फैटी लिवर सहित कई बीमारियों को न्योता देना है. भोजन में पौष्टिक आहार अवश्य लें. शराब का सेवन ना करें तो बेहतर है. यदि शराब के आदी हैं तो सेवन कम कर दें लेकिन पौष्टिक आहार जरूर लें.