बालोद :- बालोद का नाथ समुदाय में जन्म से लेकर मृत्यु तक शिव को ही समर्पित रहता है.इस समुदाय की विशेषता ये है कि ये खुद को गोरखनाथ बाबा के वंशज मानते हैं.इसलिए उन्हीं के लिए पूरा जीवन समर्पित करते हैं. समुदाय से जुड़ा हर शख्स सिर्फ शिव में ही आस्था रखता है. इसलिए जब इस समुदाय में किसी बालक का जन्म होता है तो उसे शिव आराधना के साथ परिवार में शामिल किया जाता है.ठीक उसी तरह से मृत्यु होने पर शख्स की विदाई योगी के रूप में होती है.
बालोद जिले में 200 परिवारों का एक समुदाय है. जिसे नाथ जोगी परिवार के नाम से जाना जाता है.इस समुदाय में यदि किसी की मृत्यु होती है तो उसकी समाधि बनाई जाती है.सिर्फ समाधि बनाकर ही समुदाय का काम पूरा नहीं होता,बल्कि समाधि के ऊपर शिवलिंग बनाकर उस योगी की शिव की प्रति श्रद्धा को उसके जाने के बाद भी दिखाया जाता है.समुदाय से जुड़े लोगों की माने तो ये परंपरा कब से चली आ रही है ये ठीक से नहीं पता,लेकिन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक परंपरा का निर्वहन हुआ है.
समाधि में स्थापित शिवलिंग का पूजन :
नाथ समुदाय के जोगी परिवार की ये परंपरा बेहद ही अनोखी है. जब समाधि के ऊपर शिवलिंग की स्थापना की जाती है तो इसी स्थापित शिवलिंग में उनके वंशज पूजा अर्चना भी करते हैं. ईटीवी भारत ने जब समाधि स्थलों का निरीक्षण किया तो प्रत्येक समाधि स्थल में भगवान शिव के शिवलिंग बने थे.इनमें से कुछ शिवलिंग सैंकड़ों वर्ष पुराने भी बताए जाते हैं.
क्यों लेते हैं समुदाय के लोग समाधि :
नाथ समुदाय के भगवान शिव ही गुरु और ईष्ट देव हैं. कुछ लोगों ने बताया कि हम चैतन्य हैं, जीवन भर तपस्या करते रहते हैं, और तपस्या में शरीर जीवन भर जलता है. इसलिए हमारे नाथ समुदाय में अंतिम संस्कार अग्नि दहन से नहीं किया जाता. बल्कि समाधि लेने की प्रथा है. मृत्यु के बाद पुरुषों को नहलाकर योगी की वेशभूषा धारण करवाई जाती है. फिर किसी योगी के जैसे ही समाधि दी जाती है. यह अपने आप में एक अलौकिक कथा को संजोए हुए हैं.
हर नाम में जुड़ा है नाथ :
योगी परिवार के सदस्य एवं वरिष्ठ नागरिक अनिल नाथ योगी ने बताया कि योगी समाज में अगर सदस्य को जोड़ा जाता है तो उसके नाम के साथ नाथ शब्द भी जोड़ दिया जाता है.
समाज का ऐसा मानना है कि वे अपने आप को भगवान शिव के वंशज मानते हैं .अपने इष्ट देव के रूप में गोरखनाथ की पूजा करते हैं. जिसके चलते अपने नाम के साथ नाथ शब्द भी जोड़ते हैं. यही वजह है कि किसी भी सामाजिक व्यक्ति के निधन होने के बाद समाधि स्थल के ऊपर शिवलिंग बनाते हैं. खासकर सावन और सभी त्योहारों में उस शिवलिंग की पूजा समाज के लोग करते हैं- अनिल नाथ योगी, सदस्य
भगवान के चरणों में मिलता है स्थान :
समाधि के ऊपर निशान या फिर प्रतिमा लगाने का रिवाज अक्सर ईसाई धर्म में देखने को मिलता है.जहां क्रॉस का निशान लगाया जाता है. लेकिन हिंदू संप्रदाय में यह परंपरा नाथ योगी समाज में ही देखने को मिलती है. इस परंपरा को समझाने के लिए समाज के सदस्य तरुण नाथ योगी ने समाधि स्थल का भ्रमण कराया.तरुण ने बताया कि वो गौरवान्वित महसूस करते हैं कि उनका जीवन शिव आराधना में गुजरता है. समाधि के ऊपर शिवलिंग बनाने से भगवान शिव के चरणों में स्थान मिलता है.मृत्यु के बाद भी हमारी समाधि हमारी आत्मा हमारा पूरा जीवन भगवान शिव से जुड़ा हुआ रहता है.